यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की खंडपीठ ने जय शंकर अग्रहरी सहित सैकड़ों डायरेक्टरों की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा है कि धारा 164 के अंतर्गत अयोग्य घोषित किए गए कंपनी डायरेक्टरों का डिन नंबर निरस्त या निष्क्रिय नहीं किया जा सकता । इस संबंध में नियम 11 के तहत निर्धारित शर्तों के उल्लंघन पर ही निर्णय लिया जा सकता है ।कोर्ट ने अपने 89 पेज के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा है कि कंपनी रजिस्ट्रार का आदेश नियमानुसार नहीं है।
भारत सरकार ने देश की करीब तीन लाख कंपनियों के डायरेक्टरों के ऊपर कार्रवाई की। यह वह डायरेक्टर हैं जो ऐसी कंपनियों में थे जो फर्जी थी। जिन्होंने पिछले 3 साल का रिटर्न दाखिल नहीं किया था। ऐसी कंपनियों को बंद कर दिया गया और उन के डायरेक्टरों को अयोग्य करार देते हुए अगले 5 साल तक किसी दूसरी कंपनी में डायरेक्टर के तौर पर काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसी कार्रवाई के तहत उनके डिन नंबर बंद कर दिए गए थे। जिसकी वजह से वह दूसरी कंपनियां का कार्य नहीं कर पा रहे थे।