फेसबुक सहित सोशल मीडिया पर इस पर बहस छिड़ी है। वरिष्ठ पत्रकार और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हर्षवर्धन त्रिपाठी सरकार के नाम बदलने के फैसले का स्वागत करते हैं। बकौल त्रिपाठी नाम बदलना सरकार की प्राथमिकता में नहीं होना चाहिए, लेकिन प्रयाग नामकरण प्राथमिकता नहीं, उस धरती को सम्मान देना और महत्व देना है। बाकी दुनिया संगम की धरती को प्रयागराज ही जानती है। इसके जवाब में राहुल कपूर टवीट करते हैं, नाम बदलकर सिर्फ भक्तों को खुश किया जा सकता है। पर नाम केवल कागजों में ही बदलेगा, हमारे दिमाग में नहीं। राहुल कहते है की #Allahabad के साथ भी #MeToo हो गया #BJP #Prayagraj हैं।
कहीं अस्तित्व ही न मिट जाए
काशी हिंदू विवि के शोध छात्र अजीत प्रताप सिंह शहर का नाम बदलने से इत्तेफाक नहीं रखते। कहते हैं, इलाहाबाद का नाम बदलकर तीर्थराज प्रयागराज करने से मैं उत्सुक और निराश दोनों हूं। डर लग रहा है कि राजनीतिक पृष्ठभूमि तलाश रही बीजेपी कहीं तीर्थराज प्रयाग के अस्तित्व को ही मिटा न दे। जैसा कि सरकार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय को लगभग खंडहर कर दिया है। जैसे नालंदा विश्वविद्यालय को बख़्तियार ख़िलजी ने बर्बाद किया था वैसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय पिछले चार बरस में बर्बाद किया जा चुका है। अजीत का समर्थन करते हुए अनूप मिश्रा ने फेसबुक पर लिखा है कि इस आश्ंका से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि नियति सही है तो ठीक है यदि नहीं तो आप का डर 100% सच होगा
पुराना नाम करना गौरव की बात है
योगी अरविंद फाउंडेशन के चेयरमैन योगी अरविंद फेसबुक पर लिखते हैं प्रयाग नाम अत्यंत पुरातन है और गौरव की बात हैं प्रयागराज वापस लौटा है। प्रयागराज इलाहाबाद से अधिक बौद्धिक शहर था और साबित होगा। रही बात राजनीति की। साधुओं में, सनातन धर्मावलम्बियों में आनंद की लहर हैं। जिस शिक्षा का मूल विदेश में हैं वह शिक्षा भारतीय ज्ञान परम्परा को बौना दिखाने के प्रयास में रहती हैं।
तो देश का नाम आर्यावर्त कर दें
इविवि के रिसर्च फेलो आलोक त्रिपाठी फेसबुक पर लिखते हैं प्रयाग नाम होना गर्व की बात है। नाम का क्या फर्क होता है उसके लिए इतना कहूंगा कि यदि आपका या हमारा नाम जेम्स या फिर मार्टिन कर दिया जाए तो तो प्रभाव पड़ेगा और उसे पूर्ववत कर देने पर जो प्रभाव पड़ेगा वही प्रभाव इलाहाबाद को प्रयाग करने से होगा। हालांकि इससे असहमत इश्वर शरण डिग्री कॉलेज विकास कुमार कहते हैं कि नाम बदलने से क्या केवल देश का विकास हो सकता है अगर नाम बदलना है तो भारत का नाम आर्यावर्त क्यों न रख दिया जाए।