संगम नगरी की सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार सावन के हर सोमवार को गहरे बाजी का लुफ्त यहां के लोग उठाते है।
इलाहाबाद में तांगा रेस
प्रसून पांडेय की रिपोर्टइलाहाबाद. सावन महीने का संगम नगरी में जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही यहां की गहरी बाजी देशभर में प्रसिद्ध है। लेकिन इस बार गहरेबाजी को लेकर संगम नगरी के लोगों अपने मन मुताबिक समय न मिलने से निराशा है।
बता दें कि संगम नगरी की सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार सावन के हर सोमवार को गहरे बाजी का लुफ्त यहां के लोग उठाते है। लेकिन इस बार जिला प्रशासन ने पूरे आयोजन को सीमित कर दिया है और शाम पांच बजे की अनुमति दी है। जिससे गहरे बाजी का मजा किरकिरा हो गया है ।
सदियों पुरानी है परम्परा गहरेबाजी की परंपरा सदियों पुरानी है। गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल की तरह मानते हैं। इस आयोजन में हिन्दू मुस्लिम दोनों धर्मो के लोग बराबर हकदार होते हैं। गहरेबाजी को लेकर लोगों की अलग अलग धारणाएं भी हैं ।
पुरोहित समाज का कहना है कि गहरे बाजी की प्रयाग के तीर्थ पुरोहित विष्णु महाराज ने रखी थी । कहा जाता है कि विष्णु महाराज हमेशा घोड़े से चलते थे और वह देशभर से आने वाले घुड़सवारों के साथ अपने घोड़े को मैदान में उतारते थे। जिसके लिए सावन के सोमवार का दिन चुना जाता था। वहीं अन्य धर्मावलंबियों का मानना है कि गहरे बाजी की परंपरा राजा हर्षवर्धन के जमाने से चली आ रही है, जिसे राजा हर्षवर्धन कराते थे और उनके घोड़ों को मैदान में उतारा जाता था।
रॉकेट, तूफान और आंधी है मैदान में गहरे बाजी में हिस्सा लेने एक लिए जिले के बाहर प्रतापगढ़ कौशाम्बी फतेहपुर से घुड़सवार अपने अपने घोड़ो और उनकी आकर्षक बग्घी के साथ शहर में आते है। वहीं मैदान में उतरने वाले घोड़े जितने आकर्षक होते हैं उससे ज्यादा उनके नामों को सुनने के बाद उन्हें देखने का कौतूहल होता है। गहरेबाजी में उतरने वाले विष्णु महाराज के घोड़े का नाम बादल पप्पू बेली अपने तूफान के साथ ताल ठोकेंगे। तो वहीं लालजी यादव भूकंप को लेकर आज गहरे बाजी में दांव लगा रहे है । साथ ही अतीक अहमद का घोड़ा रॉकेट और अशोक अपनी सुरंग के साथ हवा में बात करते भी दिखेंगे ।
क्या है गहरेबाजी गहरे बाजी को लेकर घुड़सवारी की परख रखने और इस आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले बाबा अभय अवस्थी कहते की गहरेबाजी न हो तो साल अधूरा है । उन्होंने बताया की गहरेबाजी की मतलब होता है ,की जब हवा की रफ़्तार से भागने वाले घोड़ों का टापू एक के बाद जमीन पर गिरे उसे गहरेबाजी कहते है। दोनों पैर को हवा में उड़ा कर दौड़ने वाले घोड़े रेस को फाउल माना जाता है और उसके टापू की हर आवाज अलग सुनाई दे। उन्होंने बताया कि समय कम होने के चलते लोग निराश हैं और पहले जैसे रोमांचकता नहीं रह गई है ।