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लॉकडाउन के दौरान हाईकोर्ट के हजारों मुंशी हुए बेरोजगार , परिवार का जीवन यापन हुआ मुश्किल

locationप्रयागराजPublished: Apr 06, 2020 07:37:50 pm

18 हजार वकीलों के साथ चार हजार से अधिक बेरोजगार

Thousands of high court scribes became unemployed during lockdown

लॉकडाउन के दौरान हाईकोर्ट के हजारों मुंशी हुए बेरोजगार , परिवार का जीवन यापन हुआ मुश्किल

प्रयागराज 6 अप्रैल । वैसे तो कोरोना वायरस वैश्विक महामारी से पूरा देश ही जूझ रहा है और इसमें हर वर्ग के कामगार शामिल है । लेकिन वकीलों के साथ कोर्ट में काम कर रहे और न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगों में शुमार मुंशियों (एडवोकेट्स क्लर्क) की भी परेशानी किसी से कम नहीं है । इलाहाबाद हाईकोर्ट में लगभग 18 हजार के करीब प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की संख्या है । सभी वकीलों के पास अपने मुंशी नहीं होते लेकिन वे वकील भी अपने साथी के मुंशी से काम लेते रहते हैं और काम के एवज में उन्हें पैसे देते हैं । लेकिन अब हजारों मुंशी तमाम कामगार लोगों की तरह बेरोजगार है ।

लाकडाउन की घोषणा के पहले से ही हाईकोर्ट परिसर को सैनेटाइजेशन के लिए बंद कर दिया गया था ।बाद में देशव्यापी लाकडाउन की प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद हाईकोर्ट भी अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया है । इस बंदी के चलते हाईकोर्ट के जूनियर वकीलों को परेशानी तो है ही । उनसे भी अधिक परेशानी हाईकोर्ट के लगभग चार हजार के करीब मुंशियों के परिवारों के सामने आ गई है । ये मुंशी अपने प्रतिदिन की आमदनी से ही अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं । कोर्ट खुलने पर ही इन मुंशियों की आमदनी होती है और बंद रहने पर बंद हो जाती है ।


वकीलों के साथ बहुत कम मुंशी को ही वकीलों से मासिक वेतन मिलता है। जिसे मिलता भी है वह बहुत थोड़ा मिलता है और उससे परिवार का भरण पोषण सम्भव नहीं होता । इनकी आमदनी का प्रमुख जरिया कोर्ट से सम्बंधित विविध प्रकार के कामों जैसे. आदेश निकालना, मुकदमा दाखिल करना, केसो की कोर्ट में निगरानी करनी पड़ती है। अचानक देशव्यापी लाकडाउन के चलते इनके परिवार के भरण-पोषण की समस्या खडी हो गयी है । सरकार तक इनकी तकलीफें पहुंचाने वाला कोई संगठन नहीं है। और न ही कोई ऐसी संस्था है जो इनकी परेशानियों को सरकार के सामने उठाए।


इनका कोई बड़ा संगठन भी नहीं होता कि वे इसके माध्यम से अपनी इस समस्या को हल कर सके। अब तो इनके सामने आम लोगो को मिल रही सरकारी राहतों के अलावा और कोई चारा नहीं है । जिससे ये अपने परिवार की भूख मिटा सके। अदालती कामकाज से जीवन यापन करने वाले मुंशियो के सामने कोई नही है जिसे वे अपनी व्यथा सुनाकर निदान पा सके । अगर लाकडाउन का आदेश और बढता है तो न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगों को इनकी परेशानी पर गंभीरता से विचार कर उसका कोई शीघ्र निदान ढूढना होगा । अन्यथा इनका जीवन यापन दुश्कर हो जाएगा । बार काउन्सिल तो वकीलों की परेशानियों पर विचार कर रही है । मुंशियो की दशा पर विचार कर इनकी तकलीफ के निदान का हल ढुढने वाला फिलहाल कोई दिख रहा है । यही समय है कि न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगो को अभी वक्त रहते इनकी भी परेशानी का कोई शीघ्र हल निकालना होगा ।

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