संगम की रेती पर गंगा यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी घाट पर हर साल लगने वाले सनातन धर्म के सबसे बड़े मेले को यूनेस्को ने सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है। धार्मिक मान्यताओं वालो आस्था के इस मेले में धर्म और पुण्य की डुबकी लगाने वाले करोडो श्रधालुओ की भीड़ ने दुनिया को सात समन्दर पार से यहाँ आकर्षित किया है।सदियों से लग रहे इस आस्था के महाकुम्भ की महान परम्परा को अब दुनिया ने सम्मान दिया है। 2001 के बीते महाकुंभ या कहें कि सदी के पहले महाकुंभ को देख कर दुनिया की नजरें संगम की रेती में आकर टिक गई।दुनिया की भागती हुई रफ़्तार और जिन्दगी को सुकून देने सबसे ज्यादा युवा संगम की रेती पर आ रहे है। हर साल 12 वर्षो पर महाकुंभ हर 6 वर्षो पर अर्धकुंभ का आयोजन प्रयाग की रेती पर होता है। सदी के महाकुंभ ने दुनिया को इस कदर आकर्षित किया की अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपनी छाप छोड़ दी।
धर्म और आस्था के प्रतिक के तौर पर दुनिया में स्थापित धर्म की अदभुत परम्परा को इक्कसवी सदी में यूनेस्को ने सांस्कृतिक विरासत का दर्जा देकर विश्व में देश ही नही बल्कि धर्म का भी मान बढाया है।संगम नगरी जितना महत्वपूर्ण धर्म के लिए है।उतना की विज्ञान भी इस परम्परा से आकर्षित है।2001 के कुंभ को देश भर की मीडिया के साथ दुनिया के कैमरे में इस कदर कैद किया और दिखाया की दुनिया देखती रह गई। जिससे देश ही नही बल्कि विश्व क्व अलग लग हिस्सों में रह रहे भारतीय लोगो को उनकी मिट्टी ने बुलाया। सदियों से टेंट और कनात में महीने भर के लिये बसने वाले संगम की रेती के इस शहर ने दुनिया आश्चर्य चकित कर दिया है।भारतीय सनातन संस्कृति और भारत के सनातनी समाज के लिए जितना धार्मिक व पौराणिक महत्व संगम नगरी का है। उतना ही दुनिया के लिए यह आकर्षण का विषय है। बीते कुम्भ के बाद विदेशी सरकारों ने यहाँ के अधिकारियों को बुला कर यह जाना था की इसे किस तरह सफल बनाते है