इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता बीपी मिश्रा की जनहित याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है। अधिवक्ता बीपी मिश्रा के युवा पुत्र की 2016 में डेंगू से मौत हो गई थी। उन्होंने इलाज में लापरवाही बरतने की शिकायत करते हुए मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था। इस पत्र को अदालत ने जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार करते हुए सुनवाई शुरू की। कोर्ट का कहना था की युवक की मौत डॉक्टरों द्वारा बीमारी का सही कारण पता न लगा पाने के कारण हुई है। यह जान नहीं पाए कि उसे डेंगू है और उसे ऐसी दवाएं दी गई जो डेंगू के मरीज के लिए घातक होती है। डॉक्टरों द्वारा एंटीबायोटिक दिए जाने के कारण बाद में मरीज की स्थिति खराब हो गई और उसे बचाया नहीं जा सका।
कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा था। प्रदेश सरकार की ओर से बताया गया कि वेक्टर बाण्ड की रोकथाम के लिए तमाम उपाय किए गए हैं। प्रदेश भर में 37 सेंटेनियल सर्विलांस हास्पिटल स्थापित किए गए हैं। जहां डेंगू व चिकनगुनिया जैसी वेक्टर बाण्ड डीजिज की जांच की जाती है। इसके अलावा 32 से अधिक ब्लड सिपरेशन यूनिट्स लगाई गई हैं जहां प्लेटलेट्स तैयार किए जाते हैं। कोर्ट ने भी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह डेंगू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियों की रोकथाम के लिए तैयार की गई कार्य योजना की स्वयं मानिटरिंग करेंगे तथा जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी इन योजनाओं को लागू कराएंगे।
BY- Court Corrospondence