विनोद चंद्र दुबे 1967 समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होकर छात्र राजनीति में आए और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। उनका नाम विश्वविद्यालय के उन छात्रसंघ अध्यक्षों में गिना जाता है, जिनके कार्यकाल को आज भी छात्र राजनीति में याद किया जाता है। विनोद चंद दुबे का कद स्थानीय राजनीति में बहुत बड़ा है। समाजवादी आंदोलन में लोहिया से प्रभावित होकर वह आंदोलन और समाजवाद के लिए आवाज बुलंद करते रहे हैं। वह छोटे लोहिया कहे जाने वाले दिग्गज सपा नेता जनेश्वर मिश्रा के बेहद करीबी और उनके खेमे के मजबूत व प्रबल दावेदार हमेशा से रहे हैं। जनेश्वर मिश्र के आजीवन सानिध्य में रहे।
नगर निकाय 2007 के चुनाव में बिनोद चंद दुबे को समाजवादी पार्टी से महापौर का प्रत्याशी बनाया गया था।उस चुनाव में 6 हजार वोटों से बिनोद चंद दुबे को हार का सामना करना पड़ा था। 2007 नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस के चौधरी जितेन्द्र नाथ चौधरी विजय हुए थे।उसके बाद 2012 में समाजवादी पार्टी निकाय चुनाव में सीधे तौर पर तो नहीं आयी। लेकिन समर्थित प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा जिसमें इलाहाबाद से महिला सीट होने के नाते बिनोद चंद दुबे की पत्नी अंजू दुबे चुनावी मैदान में थी। जिसमे बसपा समर्थित अभिलाषा गुप्ता नंदी ने जीत दर्ज की थी।बिनोद चंद दुबे 10 सालों तक लगातार जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। साथ ही बीते दो दशक से टैक्सी टेंपो यूनियन के अध्यक्ष हैं।
विनोद चंद दुबे सिविल लाइंस व्यापारी एसोसिएशन के पदाधिकारी हैं। इसके अलावा शहर के सबसे पॉस इलाके सिविल लाइंस रामलीला कमेटी के अध्यक्ष और आयोजक बीते कई सालों से है। विनोद चंद दुबे की जितनी छवि समाजवादी नेता और एक अधिवक्ता की तरह है। उससे कहीं ज्यादा समाजसेवी के रूप में उन्हें शहर के लोग जानते हैं। विनोद चंद दुबे सरल स्वभाव के लिये जाने जाते है। राजनीतिक जीवन में विनोद चंद्र दुबे ने कभी भी समाजवादी पार्टी को नहीं छोड़ा जब से राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में है तब से समाजवादी झंडा बुलंद कर रहे हैं।