31 दिसम्बर को सोनगिरी पहुंचने के बाद पवन व उसके जीजा के परिवारीजनों ने साथ-साथ नववर्ष मनाया। अगले दिन सुबह उन्होंने पहाड़ पर वंदना की। यहां से करीब 12 बजे वे नीेचे उतरे और खाना खाया। इसके बाद वे ग्वालियर आए और घूमे-फिरे। यहां सभी ने मथुरा होकर रामगढ़ जाना तय किया। ग्वालियर से ये मथुरा पहुंचे, तब तक रात हो गई। यहां सबने खाना खाया। यहां रवाना होने के बाद एक कार के पीछे-पीछे करीब चार किलोमीटर तक उनकी गाड़ी चली। इसके बाद कार के दिखाई नहीं देने पर चालक धीरे-धीरे गाड़ी चलाता आगे बढऩे लगा। बहज के पास कोहरे के चलते पोखर दिखाई नहीं दी और उनकी गाड़ी करीब 18-20 फुट गहरी पोखर में जा गिरी।
पोखर किनारे नहीं थी सुरक्षा दीवार
जिस स्थान पर हादसा हुआ है, वहां सडक़ पर दोनों तरफ कोई सुरक्षा दीवार नहीं थी। ग्रामीणों का आरोप है कि यहां किनारे पर खड़े बबूल के पेड़ों को कुछ दिन पहले पीडब्ल्यूडी विभाग ने कटवा दिए, जिससे रहा-सहा सुरक्षा कवच भी खत्म हो गया।
जिस स्थान पर हादसा हुआ है, वहां सडक़ पर दोनों तरफ कोई सुरक्षा दीवार नहीं थी। ग्रामीणों का आरोप है कि यहां किनारे पर खड़े बबूल के पेड़ों को कुछ दिन पहले पीडब्ल्यूडी विभाग ने कटवा दिए, जिससे रहा-सहा सुरक्षा कवच भी खत्म हो गया।
सभी नींद की आगोश में थे गाड़ी के चालक ने बताया कि हादसे के समय गाड़ी में बैठे सभी लोग नींद के आगोश में थे। कोहरे के चलते वह धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था। हादसे के बाद डिग्गी में बैठे पदम, उसके बेटे संजय सहित संकेत व नितिन ने एक-दूसरे के हाथ पकड़ लिए। ग्रामीणों के डिग्गी खोलते ही सभी बाहर निकल आए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यदि डिग्गी भी अन्य सीटों की भांति बंद होती तो इन्हें बचाना भी मुश्किल होता।