में पिछले कई सालों से मंदिर में सेवा दे रहा हूं, यह रथयात्रा उडीसा की जगन्नाथपुरी की तर्ज पर निकलती है। पहले भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा इंद्र विमान में निकलती थी जिसे पहले चार हाथी खिंचते थे , बाद में दो हाथी खिंचते थे लेकिन अब समय के साथ इस रथ को टैक्टर से खिंचा जा रहा है।पूरण् मल शर्मा, श्रद्धालु
मैं बचपन से ही मंदिर में आ रहा हूं , आज भगवान जगन्नाथ की कृपा से ही मुझे सब कुछ मिला है। जगन्नाथ मेले के दौरान भी मंदिर में लगातार सेवा करता हूं, मेले के दौरान पहले बेटियों को खासतौर से बुलाया जाता था, मेले के दौरान घर में भी रौनक रहती थी। यह शहर का सबसे बडा आयोजन होता था। आज भी दूर दूर से श्रद्धालु मेले से आते हैं।
मोहन शर्मा, श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा केवल मंदिर के लिए ही नहीं बल्कि सभी के लिए आस्था का केंद्र है। मेले के दौरान घर परिवार में भी उत्सव का माहौल रहता था। अष्टमी को मंदिर में होने वाला जगन्नाथ का भात विशेष कार्यक्रम होता था जिसमें पंचामृत व चावल का प्रसाद बंटता है। इस प्रसाद को लेने के लिए मंदिर में दूर दूर से महिलाएं शामिल होती थी। आज भी इसका आकर्षण कम नहीं हुआ है।कुक्कुराम सैनी, श्रद्धालु
जब रथ् यात्रा निकलती है तो बाजारों में छतों पर हर तरफ श्रद्धालु नजर आते हैं, मेले से लोक किवदंती भी जुडी हुई है। कहा जाता है कि जब काले मुंह का निकलेगा तो ही बरसात होगी। आज तक यह ऐसा ही होता आया है, भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के दौरान इंद्र देव स्वयं भगवान का अभिषेक करते हैं।
जितेंद्र ख्ंडेलवाल, श्रद्धालु