पहले अरावली की मार, अब सरिस्का भारी पूर्व में अरावली पर्वतमाला में खनन कार्य पर पूरी तरह रोक लगाने के आदेश जारी किए गए, इससे जिले में बड़ी संख्या में खनन कार्य बंद हो गया। बाद में सरिस्का से 10 किलोमीटर दूर तक खनन की छूट दी गई। बाद में समय- समय पर इस छूट का दायरा घटता, बढ़ता रहा। इस कारण सरिस्का एवं राजगढ़ क्षेत्र में एक के बाद एक खान बंद होती गई। इससे क्षेत्र में रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया।
अब सरिस्का सेंसेटिव जोन की मार सरिस्का बाघ परियोजना का इको सेंसेटिव जोन निधाZरित करने के लिए करीब एक साल पहले ड्राफ्ट तैयार किया गया था। इको सेंसेेटिव जोन के ड्राफ्ट पब्लिकेशन पर आसपास के ग्रामीणों की आपत्ति ली गई, लेकिन इसका अंतिम प्रकाशन अब तक नहीं किया जा सका है। सरिस्का के इको सेंसेटिव जोन का निधाZरण नहीं होने के कारण सरकार ने आसपास के क्षेत्र में खनन कार्य के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति पर रोक लगा दी। नतीजतन टहला खनन क्षेत्र की ज्यादातर मार्बल खानों को पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं मिलने से उनमें उत्पादन रोकना पड़ा है।
अवैध खनन को मिला बढ़ावा मार्बल की ज्यादातर खाने बंद हो चुकी हैं, इस कारण टहला, झिरी, नारायणी माता के आसपास के क्षेत्रों में अवैध खनन बढ़ गया। इसका नुकसान नियमों के तहत लीज आवंटन कराने वाले खान संचालकों को उठाना पड़ा है।
उद्योगों पर भी संकट छाया मार्बल खान बंद होने का सबसे ज्यादा असर डोलोमाइट पाउडर बनाने वाले उद्योगों पर पड़ा है। देश भर में मार्बल के सफेद पाउडर की बड़ी मांग है। राजगढ, अलवर के एमआइए में बड़ी संख्या में डोलोमाइट पाउडर पीसने के उद्योग लगे हैं, इनमें मार्बल खंडा की सप्लाई टहला खनन क्षेत्र व सरिस्का के आसपास खानों से होती है। इनमें से ज्यादातर खाने बंद होने से उद्योगों की मार्बल खंडा की पूर्ति नहीं हो पा रही है। इससे उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों के रोजगार पर संकट आने लगा है।