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अलवर संसदीय क्षेत्र: उपचुनाव में बना था प्रवेश द्वार, विधानसभा में धीमी हुई रफ्तार, अब मुकाबला कड़ा

locationअलवरPublished: Apr 22, 2019 01:53:43 am

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abdul bari

प्रत्याशीभाजपा – बाबा बालकनाथ
कांग्रेस – भंवर जितेन्द्र सिंह

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अलवर संसदीय क्षेत्र: उपचुनाव में बना था प्रवेश द्वार, विधानसभा में धीमी हुई रफ्तार, अब मुकाबला कड़ा

हीरेन जोशी/अलवर।
ठीक चौदह माह पहले अलवर ( Alwar Lok Sabha constituency) में लोकसभा उपचुनाव हुआ था। कांग्रेस ने इसमें 1.96 लाख मतों की बढ़त के साथ जबरदस्त वापसी की थी। तब क्रिकेट के नाइट वॉचमैन की तर्ज पर डॉ. करणसिंह यादव ने चुनाव लड़ा था और भाजपा ने जिले के तब के कैबिनेट मंत्री जसवंत यादव को उतारा था। जबकि 2014 में यहां से कांग्रेस से पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और भाजपा से अस्थल बोहर मठ रोहतक के महंत चांदनाथ प्रत्याशी थे। चांदनाथ के असामयिक निधन के बाद सीट खाली हुई थी। चुनाव के बाद कांग्रेस उत्साहित थी, लेकिन विधानसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस ने इस बढ़़त को खो दिया। लोकसभा क्षेत्र में मात्र तीन सीटें ही कांग्रेस के खाते में आई, जबकि दो बीजेपी, दो बसपा और एक निर्दलीय ने जीत ली। उपचुनाव में अलवर कांग्रेस के लिए संसद में प्रवेशद्वार बना था, जबकि विधानसभा चुनाव आते-आते यह रफ्तार कम हो गई।
अब लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) में जितेंद्र सिंह कांग्रेस से तो महंत चांदनाथ के शिष्य बालकनाथ बीजेपी के प्रत्याशी हैं। विधानसभा में दो सीटें जीतने से उत्साहित बसपा ने यहां से इमरान खान को उतारा है। बालकनाथ अपने गुरु की तरह ही उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीब माने जाते हैं तो जितेंद्र सिंह कांग्रेस के प्रथम परिवार के विश्वस्त माने जाते हैं। अलवर का चुनाव दोनों के लिए आसान नहीं हैं। जितेंद्र सिंह के सामने भले ही प्रत्याशी नया है, लेकिन मोदी फेक्टर के असर पर पार पाना उनकी रणनीति का मुख्य हिस्सा है। जबकि बालकनाथ टिकट तो ले आए हैं, लेकिन पार्टी में शुरू से ही दबी जुबान में विरोध शुरू हो गया। कुुछ स्थानीय पार्टीजन का सहयोग नहीं मिलना उनकी शुरुआती चिंता है। बसपा के मैदान में होने के बावजूद कांग्रेस ने यहां संभावित नुकसान को कम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत बसपा के कुछ प्रभावशाली लोगों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।
राजगढ़ से राठ तक बदल जाते हैं समीकरण

अलवर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा हैं। इनमें कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ से है। यहां पिछली लहर में भी कांग्रेस ने बढ़त ली थी और विधानसभा में जिले की सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी। इसके अलावा अलवर ग्रामीण में भी कांग्रेस की पकड़ मजबूत है। जबकि रामगढ़ में भी कांग्रेस को बढ़त की उम्मीद रहेगी। इन तीनों ही जगह कांग्रेस के विधायक हैं। वहीं भाजपा के लिए इस बार सबसे बड़ी उम्मीद है बहरोड़ विधानसभा क्षेत्र से। कांग्रेस के रणनीतिकारों को भी इसका पूरा अंदाजा है। जबकि पड़ौसी मुंडावर और किशनगढ़बास में भी भाजपा खुद को मजबूत मान रही है। किशनगढ़बास में मौजूदा सांसद डॉ. करणसिंह ने हाल ही विधानसभा चुनाव में शिकस्त खाई थी और पुराने कांग्रेस रहे दीपचंद खैरिया ने बसपा के टिकट पर यह चुनाव जीत लिया था। तिजारा में बसपा से विधायक है। यहां कांग्रेस-भाजपा में टक्कर के बीच बसपा प्रत्याशी के वोट कांग्रेस के लिए चिंता बढ़ाने वाले हो सकते हैं। जबकि अलवर शहर भाजपा का परम्परागत गढ़ है। जितेंद्र सिंह का खुद का यहां असर है। इसके बावजूद भाजपा को विधानसभा चुनाव की बढ़त पर विश्वास है। स्थानीय विधायक संजय शर्मा भाजपा के हैं, लेकिन फिलहाल प्रचार में कम ही नजर आ रहे हैं। पूर्व जिलाध्यक्ष ने तो टिकट वितरण से पहले खुल्लमखुला बालकनाथ की उम्मीदवारी से असहमति जताई थी। यह तय है कि अलवर शहर में जिसने बढ़त ली उसका पलड़ा पूरे क्षेत्र में भारी रह सकता है। एक विधायक के स्वाइन फ्लू होने और एक अन्य के परिजन के जयपुर में उपचार होने के कारण अंदरखाने कुछ चर्चाएं भी चल रही हैं।
मुद्दे जो सबको पता है लेकिन चर्चा नहीं

अलवर में पेयजल संकट सबसे बड़ी समस्या है। यहां चंबल का पानी लाने का सपना सभी नेता दिखाते हैं, लेकिन अब तक हुआ कुुछ भी नहीं है। अरावली क्षेत्र में अवैध खनन के चलते कई पहाड़ समाप्ति के कगार पर हैं। इससे पर्यावरण संकट बड़ा मुद्दा है। यूपीए के समय में स्वीकृत 850 करोड़ रुपए का भवन होने के बावजूद यहां मेडिकल कॉलेज नहीं बन पाया। भिवाड़ी में वायु प्रदूषण बड़ी समस्या है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने के बावजूद अलवर को कुछ लाभ नहीं मिल पाना बड़ा मुद्दा है। बढ़ते अपराध भी यहां चर्चित मुद्दा हैं। आमजन इन मुद्दों पर चर्चा तो करते हैं, लेकिन वोट भावनात्मक आधार पर ही देने का ट्रेंड है।
लोकसभा क्षेत्र के ततारपुर चौराहे पर चाय की दुकान पर बैठे पूरण यादव का कहना है कि मुद्दे तो बहुत हैं, लेकिन चुनाव में सब अपने हिसाब से बात करते हैं। मातौर के किसान शिब्बाराम चौधरी का कहना है कि विकास कितना भी हो, लेकिन खेतों में अब पानी की कमी हो रही है। यहां कोई भी अब तक पानी का प्रबंध नहीं कर पाया है। चम्बल का पानी आएगा यह वादा सभी करते हैं, लेकिन कहां से आएगा, कब आएगा यह कोई नहीं बता सकता।
कुल मतदाता – 18 लाख 62 हजार 387

मतदान केन्द्र- 1991

17 चुनाव में अब तक
11 बार कांग्रेस जीती
3 बार भाजपा जीती
एक बार जनता पार्टी जीती

एक बार जनता दल जीता
एक बार निर्दलीय जीता
2014 : जीते – महंत चांदनाथ (भाजपा) 60.56 प्रतिशत वोट

2018 के उपचुनाव में जीते – डॉ. करणसिंह यादव (कांग्रेस) 56.96 प्रतिशत वोट

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