इस बात को रामगढ़ थाने के एएसआई मोहनसिंह ने भी स्वीकारा है। उनका कहना है कि थाने पर लिखत-पढ़त में ज्यादा समय लग गया था इसलिए रकबर को अस्पताल में देरी से भर्ती कराया गया, लेकिन उन्होंने रकबर के साथ पुलिस द्वारा मारपीट करने की बात से इनकार किया है। फिर भी पूरे घटनाक्रम को बारीकी से देखें तो कई ऐसे सवाल उठ रहे हैं जो पुलिस की कार्रवाई को संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है। वहीं, पुलिस अधिकारियों से भी संदेह भरे सवालों का स्पष्ट जबाव देते नहीं बन रहा है। पुलिस अधिकारी सीधे तौर पर कुछ भी कहने से बचते नजर आ रहे हैं।
गौरतलब है कि शुक्रवार रात ललावंडी में गोतस्करों के आने की पुलिस को मिली प्रथम सूचना व रामगढ़ के डॉक्टर के पास घायल रकबर को ले जाने में करीब तीन घंटे का अन्तर था। इस अन्तर ने पुलिस की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े कर दिए थे। सबसे बड़ा सवाल ये था कि यदि रकबर घायल था और पुलिस के सामने ही बेहोश हो गया था, तो पुलिस उसे सीधे अस्पताल क्यों नहीं लाई? इस बात का जवाब देने से शनिवार को पुलिस अधिकारी बचते रहे। दरअसल, उनके कुछ कहते ही यह मामला पुलिस कस्टडी में मौत में तब्दील हो जाता। हालांकि रविवार को जिला पुलिस अधीक्षक ने इसकी भी जांच के आदेश दिए।
लेकिन शाम को पत्रिका से बातचीत में खुद एएसआई ने स्वीकार लिया कि रकबर को अस्पताल से पहले थाने लाया गया था। गौरतलब है कि रकबर की मौत को लेकर पत्रिका ने पूर्व में ही संदेह जताया था। इस संदर्भ मेें रविवार के अंक में ‘क्या हुआ रकबर के साथ’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर पुलिस की बताई घटना पर संदेह भी जताया था।