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राजस्थान के सिंहद्वार अलवर में हैं संभावनाएं अपार, बस ठीक हो अपने शहर की सरकार

locationअलवरPublished: Nov 12, 2019 10:02:55 am

Submitted by:

Lubhavan

निकाय चुनाव के लिए शहर की सरकार चुनने के लिए अब कुछ दिन का समय शेष है, ऐसे में अपने जनप्रतिनिधि सोच-समझकर चुनें।

Alwar Nagar Parishad Elections Patrika Talk Show

राजस्थान के सिंहद्वार अलवर में हैं संभावनाएं अपार, बस ठीक हो अपने शहर की सरकार

छोटे-बड़े शहरों की सूरत सुधरने के बावजूद भी अलवर शहर की तस्वीर नहीं बदल सकी है। अब शहर की सरकार बनाने का वक्त है। मतदाता के वोट के निर्णय पर बहुत कुछ टिका है। अच्छे चेहरे सामने आए तो आगामी पांच साल में शहर की सरकार से जन मुद्दों को हल करने की उम्मीद की जा सकती है। जिस तरह दूसरे शहरों में मूलभूत सुविधाएं दुरुस्त हुई है। वैसे ही अलवर में बदलाव की जरूरत है। इस मसले पर हमने शहर के कुछ प्रबुद्ध लोगों से बातचीत की तो उन्होंने कई तरह के सुझाव सामने रखे हैं। आप भी जानिए उनके सुझाव।
सांसों में घुलते जहर को रोकें

अलवर सहित पूरे एनसीआर में प्रदूषण चरम पर है। आमजन को सांस लेने में मुश्किल हो गई है। गंदगी को देखकर सामान्य व्यक्ति में विकार आते हैं। चिड़चिड़ापन आता है। प्रदूषण सहित सभी तरह का शोर-शराबा हर किसी को प्रभावित करता है। अब जरूरी है कि लोकल बॉडी सक्रिय हो। आमजन को जागरूक करने की जरूरत भी है। कचरा जलाने से जहरीली गैस निकलती है। जो हमारे फेफडे़, दिमाग व दिल पर असर डालती है। तभी तो जिले में मरीजों की संख्या तेजी से बढऩे लगी है। यह समझने की जरूरत है। शहर की सरकार में अच्छे प्रतिनिधि चुनेंगे तो समाधान की उम्मीद की जा सकती है।
डॉ. अनिल खण्डेलवाल, न्यूरो फिजिशियन
डूंगरपुर का नाम, अलवर का क्यों नहीं

अलवर को देख निराशा पाते हैं। वर्षों से चाहते हैं इस शहर का देश में नाम हो। लेकिन पिछले पांच साल में कुछ नया नहीं कर पाए। जैसे डूंगरपुर का नाम है। दिल्ली व जयपुर के नजदीक होने के बावजूद यहां अलग-अलग क्षेत्रों में विकास की अपार संभावनाएं है। फिर भी यहां आए दिन देखते हैं कि सडक़ किनारे कचरा पड़ा रहता है। अब मतदाताओं को नयापन लाने पर सोचना होगा। जिसके लिए युवाओं को शहर की सरकार में मौका देने की जरूरत है। तभी हम शहर को स्वच्छता में आगे लेकर आ सकेंगे।
डॉ. एससी मित्तल, वरिष्ठ चिकित्सक, अलवर
सिंधु घाटी सभ्यता वाला अलवर

इतिहास को ध्यान में रखकर बात करें तो सिंधु घाटी सभ्यता की तर्ज पर पूरे हिन्दुस्तान में दो शहर बसाए गए। जिसमें एक जयपुर व दूसरा अलवर है। सिंधु घाटी सभ्यता में वहां की नाली व सडक़ें देखें तो वे एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। ये सिस्टम अलवर में भी वहीं से लिया गया है। यह इसलिए बनाया गया ताकि शहर में कहीं पानी नहीं भरे और गंदगी नहीं रहे। लेकिन, अलवर में हर चौराहे पर पानी भरा होता है। रास्ता रुक जाता है। मेरा कहना है कि मैरिज होम जैसे संस्थान कचरा नाली में डालते हैं। इनको सख्ती से रोका जाए। पुराने सिस्टम को पुनर्जीवित करने की जरूरत है।
नरेन्द्र तिवाड़ी, कोचिंग संचालक, अलवर
छोटा शहर फिर भी अस्त-व्यस्त

असल में टै्रफिक की बढ़ती संख्या अब समस्या के रूप में सामने आने लगी है। बड़े शहरों की तुलना में अलवर छोटा है व ट्रैफिक भी कम है। फिर भी यहां ट्रैफिक अस्त-व्यस्त है। यहां सडक़ों को कभी भारी वाहन की जरूरत के अनुसार नहीं बनाते हैं। जिसके कारण सडक़ें जल्दी टूटती हैं। बच्चों को १८ साल से पहले वाहन चलाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। नो पार्र्किंग जोन में बड़े वाहनों को सख्ती से रोका जाए। एेसा नहीं होने से चर्च रोड सहित बाजारों मंे बड़े वाहन खड़े मिल जाते हैं। जाम लग जाता है। हॉर्न बजने लगते हैं। यह सब झेलना कठिन है।
सचिन गुप्ता, ऑटोमोबाइल डीलर
जहां अच्छा वहां से सीखें

हमें दूसरे देशों की तर्ज पर ट्रैफिक सहित अन्य सिस्टम को दुरुस्त करने की जरूरत है। शहर की सरकारें जब तक कुछ नया करने का प्रयास ही नहीं करेंगे तब तक बदलाव भी कहां से आएंगे। यह सच है कि राजनीति में बदलाव करने की सोच वाले युवाओं को आगे लाने की जरूरत है। ताकि वे अपने विजन के अनुसार शहर की जरूरतों को पूरा करा सकें।
सुशील, बिल्डर, अलवर
चाहें तो बहुत कम पैसे में सब बदलना संभव

मेरे स्कूल, कॉलेज व हाउसिंग सोसायटी में कोई सीवरेज व पानी का कनेक्शन नहीं है। बहुत थोड़े पैसे में हम सब अच्छे से मैनेज कर रहे हैं। कचरा निस्तारण भी पूरा करते हैं। विदेश में भी हाउसिंग सोसायटी को देखा है। वहां सीवरेज लाइन बंद होती हैं। वाटर हार्वेस्टिंग 100प्रतिशत होता है। जिसके कारण हमारे कॉलेज व स्कूलों में भू-जल नीचे नहीं गया है। जबकि अलवर में तो पहाड़ों का पानी आता है। सरकार चाहें तो पूरे पानी का संचय करके पानी की समस्या को खत्म किया जा सकता है। लेकिन, यह तभी संभव होगा जब बदलाव करने वाले राजनीति में आएंगे। मनोज चाचान, शिक्षाविद्
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