दोनों तरफ चेतावनी बोर्ड व बेरिकेटिंग तक नहीं की गई। करीब 100 मीटर की यह सडक़ पिछले दो साल से उधड़ी पड़ी है। जिम्मेदार विभागों के अधिकारी कभी पानी की लाइन डालने के लिए तोड़ गए तो कभी सीवरेज लाइन डालने के लिए। फिर वापस दुरुस्त ही नहीं कराया। जिससे आए दिन जनता के वाहन धंसते रहे।
आए दिन छोटी बड़ी दुर्घटनाएं होती रही। फिर भी अब सडक़ बनाते समय किसी नियम की पालना नहीं हो रही है। आप खुद ही संभल कर जाएंगे तो बचाव रहेगा। पहले यहां कई बार सीवर व पानी की लाइन डालने वालों के सडक़ को तोड़ा। बीच-बीच में गहरे गड्ढे तक खुदे रहे। बारिश के दौरान यहां से पैदल तो दूर वाहनों का निकलना मुश्किल हो गया। करीब दो साल से अधिक समय से सडक़ उधड़ी पड़ी है। अब रोड बनाने का काम शुरू किया तो फिर से आधी सडक़ की गहरी खुदाई कर दी। ताज्जुब की बात यह है कि किसी भी तरफ चेतावनी बोर्ड तक नहीं लगाए हैं। जिसके कारण हर दस से बीस मिनट में जाम लग रहा है।
जनता जाम में फंस रही है। अधिकारियों को तनिक परवाह नहीं है। जबकि नियमों की बात करें तो बिना बेरिकेटिंग व चेतावनी बोर्ड के सडक़ को तोडऩे की शुरूआत नहीं की जा सकती है।
जनता जाम में फंस रही है। अधिकारियों को तनिक परवाह नहीं है। जबकि नियमों की बात करें तो बिना बेरिकेटिंग व चेतावनी बोर्ड के सडक़ को तोडऩे की शुरूआत नहीं की जा सकती है।
सेना के वाहन भी फंस रहे इसी रोड से ईटाराणा छावनी से शहर आने वाले वाहन निकलते हैं। बड़े वाहन होने के कारण जाम जल्दी लगता है। पानी की लाइनें भी पूरी तरह व्यवस्थित नहीं डाली गई। जिसकी पाले अब खुल रही है।
पहले स्टेशन वाली रोड की सुध नहीं पहले स्टेशन के सामने करीब 150 मीटर रोड को बनाने में दो से तीन माह लगा दिए। बीच-बीच में बारिश होने के कारण कार्य बाधित रहा। कई बार वाहनं फंसे।
इसी तरह काली मोरी पुलिया से राजर्षि कॉलेज सर्किल के बीच भी दर्जनों बार वाहन फंसे हैं। कभी पानी अधिक भरने के कारण तो कभी सडक़ धंसने से।
इसी तरह काली मोरी पुलिया से राजर्षि कॉलेज सर्किल के बीच भी दर्जनों बार वाहन फंसे हैं। कभी पानी अधिक भरने के कारण तो कभी सडक़ धंसने से।