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अलवर से एक कविता रोज: अगर- लेखक जितेंद्र बैरवा, कठूमर

locationअलवरPublished: Sep 18, 2020 05:03:55 pm

Submitted by:

Lubhavan

अगर मैं सूरज होतानहीं तप्ती यह धरतीना ही इतनी गर्मी पड़तीअगर मैं चंदा होताअंधेरी रात का अंधेरा नहीं

Alwar Se Ek Kavita Roj By Jitendra Bairwa kathumar

अलवर से एक कविता रोज: अगर- लेखक जितेंद्र बैरवा, कठूमर

अगर मैं सूरज होता
नहीं तप्ती यह धरती
ना ही इतनी गर्मी पड़ती
अगर मैं चंदा होता
अंधेरी रात का अंधेरा नहीं
बस………………………।
चांदनी रात का उजाला होता

अगर मैं वृक्ष होता
पथिक को धूप नहीं
सकल धरा को छाया देता
और ऐसा फल देता
बिना मसाले के अचार का स्वाद देता
अगर मैं बादल होता
सारे जहां की प्यास बुझा
रेगिस्तान को नई राह
हरियालीमय नन्हीं घास देता

अगर मैं पर्वत होता
अपनी ओट में जहां बसा लेता
सारे गमों को आंचल में समा लेता

अगर मैं आंसू होता
आलम के दुखों को एक बूंद में बहा देता
अगर मैं शब्द होता
गाली को प्यार, नरक को स्वर्ग
विष को अमृत, नफरत को मोहब्बत
इस जहां को कश्मीर नाम देता

-जितेंद्र बैरवा, नाटोज, कठूमर

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