सारे जहां की प्यास बुझा
रेगिस्तान को नई राह
हरियालीमय नन्हीं घास देता अगर मैं पर्वत होता
अपनी ओट में जहां बसा लेता
सारे गमों को आंचल में समा लेता अगर मैं आंसू होता
आलम के दुखों को एक बूंद में बहा देता
गाली को प्यार, नरक को स्वर्ग
विष को अमृत, नफरत को मोहब्बत
इस जहां को कश्मीर नाम देता -जितेंद्र बैरवा, नाटोज, कठूमर आप भी भेजें अपनी रचनाएं अगर आपको भी लिखने का शौक है तो पत्रिका बनेगा आपके हुनर का मंच। अपनी कविता, रचना अथवा कहानी को मेल आइडी editor.alwar@epatrika.com अथवा मोबाइल नंबर 9057531600 पर भेज दें। इसके आलावा स्कूली बच्चे अपनी चित्रकारी भी भेज सकते हैं। इन सब के साथ अपना नाम, पता, क्लास अथवा पेशा अवश्य लिखें।