scriptअलवर से एक कविता रोज: “समर्पण” लेखिका- सुमन गुप्ता अलवर | Alwar Se Ek kavita Roj By Suman Gupta Alwar | Patrika News

अलवर से एक कविता रोज: “समर्पण” लेखिका- सुमन गुप्ता अलवर

locationअलवरPublished: Sep 13, 2020 07:50:41 pm

Submitted by:

Lubhavan

माँ तेरे आँचल की धुरी हूँ मैं।माँ तेरी ममता की छाँव की परी हूँ ।।क्यों रब ने तुझे ऐसा बनाया है??रब भी तेरे कदमों मे नमन करता हुआ आया है।।

Alwar Se Ek kavita Roj By Suman Gupta Alwar

अलवर से एक कविता रोज:

एक बेटी अपनी माँ के समर्पण ,त्याग, ममता को देखकर अपनी माँ से उत्सुकतावश कुछ प्रश्न करती है।।
माँ तेरे आँचल की धुरी हूँ मैं।
माँ तेरी ममता की छाँव की परी हूँ ।।
क्यों रब ने तुझे ऐसा बनाया है??
रब भी तेरे कदमों मे नमन करता हुआ आया है।।
क्यों नमन ,वंदन करता है तुझको संसार??
क्यों खुदा ने तुझे मोम सा कोमल बनाया है??
क्यों खुदा ने काँच जैसा पारदर्शी बनाया है??
क्यों याद आती है सबको आपकी चोट लगने पर??
क्यों निकलती है आपके नाम की पहली आवाज़??
क्यों आपने दुखों की छाँव को सुखी बनाया हैं??
क्यों आपको नया जीवन नया जन्म देने के लिये चुना है??
जन्म आप देने वाली हो,
पालन-पोषण करने वाली आप,
संस्कारो को सिखाने वाली आप,
सही गलत की पहचान कराने वाली आप,
फिर भी कुल का नाम पिता से ही क्यों??
माँ धुरी का अद्वितीय चक्र हो आप,
दुर्गम परिस्थितियों को सरल बनाने वाली आप।।
मेरा आपको शत- शत वंदन,
मेरी जननी हो आप।।।
माँ ने बेटी के प्रश्नों का ध्यान पूर्वक श्रवण किया और मनन करने के पश्चात बेटी की जिज्ञासा का सहजतापूर्वक प्रत्युत्तर दिया।।
प्रिय बेटी,
मेरी सबसे प्यारी सुता हो आप,
मेरे अंतर्मन की बगिया हो आप,
आज अपनी प्रतिलिपि के प्रश्नों का उत्तर देती हूं ।।
“माँ हूँ अपने भावों को ममता के साथ व्यक्त करती हूं।।
“माँ हूँ मैं बेटी, साथ मे अर्द्धागनी भी,
सात फेरे लिए है मैंने , सात जन्म साथ निभाने को,
बेटी झुकता नही संसार मेरे कदमों मे,
झुकावता है मेरा कर्तव्य ,इस जहां को मेरे कदमो मे।।
तुम्हें चोट लगे तो मैं कैसे खुश रह सकती हूं??
क्या भला कभी शक्कर मिठास से अलग हो सकती है??
वही शक्कर हो तुम मेरी, जिसकी रग- रग मे मिठास है मेरी।।
जैसे मछली पानी से अलग होने पर सांसो से दूर हो जाती है।।
ऐसी ही जीवनसंगिनी हूँ मैं तुम्हारे पिता की।।
नाम पिता का हो या मेरा,
जीवन के हम दो अद्धभुत पहिये है,
जिन्हें साथ- साथ चलना है,
दुर्गम परिस्थितियों को मै सरलता से हल कर जाती हूँ।
तुम्हारे पिता मेरा साया बन साथ निभाते है।।
बेटी जो अधिकार तुमने आज मुझे दिये,
वो पिता के प्रेम से मुझे प्राप्त हुए।।
उस पिता को तुम वंदन करना।
उनकी छाँव को हमेशा याद रखना।
पिता है तो मेरा अस्तित्व है।
वरना मैं रज कण मे लिपटी धूल हूँ,
जिसका कोई ठिकाना नही।।”
माँ के शब्दों को सुन भाव विभोर होकर बेटी अभिव्यक्ति करती है।।
“धन्य हूँ मैं आप जैसे माता-पिता को मैंने पाया।
आप दोनों के समर्पण ने मुझे बहुत कुछ सिखाया।।
इस सीख को आत्मसात करती हूँ।।
आज मैं किसी की बेटी तो कल किसी की भार्या बनती हूँ।।
आप दोनों के विचारों को मैं अपनाउंगी।
निश्चित ही जीवन मे सफलता पाऊंगी”।।।।
सुमन गुप्ता
अलवर

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो