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अलवर से एक कविता रोज: माँ का महत्त्व, लेखक-दीपांशु शर्मा अलवर

locationअलवरPublished: Sep 28, 2020 04:50:39 pm

Submitted by:

Lubhavan

माँ तुमसा इस जग में कोई भी इंसान नहींकर सके बराबरी तुम्हारी, ऐसा तो वो भगवान् भी नहीं 77फिक़र में मेरी कुछ ऐसे घुल जाती है माँजवान होते हुए भी, बूढ़ी नजर आती है माँ

Alwar Se Ek Kavita Roj: Maa ka Mhatv By Deepanshu Sharma Alwar

अलवर से एक कविता रोज: माँ का महत्त्व, लेखक-दीपांशु शर्मा अलवर

माँ का महत्त्व

माँ तुमसा इस जग में कोई भी इंसान नहीं
कर सके बराबरी तुम्हारी, ऐसा तो वो भगवान् भी नहीं 77
फिक़र में मेरी कुछ ऐसे घुल जाती है माँ
जवान होते हुए भी, बूढ़ी नजर आती है माँ
पढ़ लेती है वो मुझे, किसी पन्ने की तरहा
मेरी हर बला को टालने का, हुनर जानती है माँ
खुद् एक निवाला खा कर भी, मुझे खिलाती है,
पता नही कहाँ से इतना, सबर लाती है माँ
जब जब में टूटा, गिरने न दिया
तूफ़ानों से लडऩे का, हुनर दिखलाती है माँ
उसके दर पर मैने खुदा को झुकते देखा है
अपनी दुआओं में, ममता का असर मिलाती है माँ
देखती है जब कभी, मुझे किसी पीड़ा में
व्याकुल होकर, अपनी हद से गुजर जाती है माँ
अनहोनी की आशंका में, बेचैन हो उठती है
लगता है किसी अखबार सी, खबर लाती है माँ
मुसीबतो ने जब भी मुझे सोने न दिया रातो में
अपने कंठ से लोरी गाकर, अक्सर सुलाती है माँ
लेखक: -दीपांशु शर्मा
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