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अलवर से एक कविता रोज: महामारी के बाद ‘मेरे सपनों का भारत’ लेखक- वेदप्रकाश अग्रवाल

locationअलवरPublished: Sep 14, 2020 06:43:04 pm

Submitted by:

Lubhavan

एक परिंदे को आस है या फिर उसका विश्वास है वक्त बदलेगा, बदलेगा कालचक्र जल्द थमेगा यह मृत्यु चक्रकुछ नये मिलेंगे कुछ बिछुडेंगे दर्द भरे सागर के बाद एक लंबे अरसे के बाद वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ

Alwar Se Ek Kavita Roj: Mere Sapnon ka Bharat By Vedprakash Agarwal

अलवर से एक कविता रोज: महामारी के बाद ‘मेरे सपनों का भारत’ लेखक- वेदप्रकाश अग्रवाल


एक परिंदे को आस है
या फिर उसका विश्वास है
वक्त बदलेगा, बदलेगा कालचक्र
जल्द थमेगा यह मृत्यु चक्र
कुछ नये मिलेंगे
कुछ बिछुडेंगे
दर्द भरे सागर के बाद
एक लंबे अरसे के बाद
वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ
नए घरोंदे नया सृजन
जाग उठेगा ये जीवन
वक्त की रफ्तार बढ़ेगी
उजडी दुनिया फिर चमकेगी
गुंजन होगा भूतल पर
मुस्कान दिखेगी कुछ उमंग भर
दर्द भरी यादों के आगे
कुछ नयन भी ओझल होंगे
राह बनाते कुछ सपने भी
नयी राह पर चलते होंगे
एक लंबे अरसे के बाद
वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ
कुछ होगा पहले जैसा
कुछ होगा जो कभी ना सोचा
रोज ढलेगी निशा यूं ही
उदय होगा यूं नया सवेरा
एक लंबे अरसे के बाद
वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ

एक आस जो मन में है
एक स्वपन जो नयन में है
दर्द भरे इस घोर अंधकार में
भूख- प्यास से क्षुब्ध संसार में
अब ना कोई रो सकेगा
ना कोई भूखा सो सकेगा
एक लंबे अरसे के बाद
वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ
कदम रोके हैं महाप्रलय ने
अपने रोके हैं अपनों से दूर
प्यार के इस महासागर में
अपनों का फिर से प्यार मिलेगा
मां की ममता परवान चढ़ेगी
कुछ रिश्तों की भी आन चढेगी
नए दौर में नई बातें होंगी
सबके चेहरों पर मुस्कान दिखेगी
रहा बटोये इस आंगन में
अपनों का फिर से मिलन होगा
एक लंबे अरसे के बाद
वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ
खेत खलिहान श्रृंगार सजाये
खिलते फूल जो मन ललचाए
भ्रमरों का निवास होगा
तितलियों से गुलजार आकाश होगा
खिल उठेंगी नई कोपलें
धरतीपुत्र का विश्वास बढ़ेगा
एक लंबे अरसे के बाद
वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ
मंदिर फिर से खुल सकेंगे
प्रभु भक्तों से मिल सकेंगे
दुआओं की एक आस लिए
मिट्टी की मूरत में विश्वास लिए
अपनों की खुशियों की खातिर
मस्तक फिर से झुक सकेंगे
एक लंबे अरसे के बाद
वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ

सीमा पर जो रक्त बहा है
अपनों ने जो दर्द सहा है
इस मिट्टी की खुशबू की खातिर
जो वापस ना घर आया है
बूढ़ी आंखें सपना देखें
यादों में बस आंसू झलकें
लौट आएगा एक दिन उनका
अर्जुन सा वीर सिपाही
एक लंबे अरसे के बाद
वक्त बदलेगा, नई सुबह के साथ
वेदप्रकाश अग्रवाल
22 वर्ष
निवासी कठूमर, अलवर

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