निर्धन की गाथा गालों पे, सूखे आँसू लिख जाते हैं
कर्ज चढा हो सिर पे , खाना खाना मुश्किल हो जाता है
कभी कभी लब पर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है
अपने ही रिश्तेदारों को , जब आँख चुराते देखा हो
बेदर्दों को “मुकेश” ये , दर्द दिखाना मुश्किल हो जाता है
कभी कभी लब पर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है
कभी कभी लब ओर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है।। स्वरचित /रचनाकार
मुकेश गुप्ता
(ग्रामविकास अधिकारी )
4/234 काला कुँआ
अलवर , राजस्थान ।