scriptअलवर से एक कविता रोज: सोचा था जो बचपन में, लेखक- मुकेश गुप्ता अलवर | Alwar Se Ek kavita Roj Socha Tha Bachpan Me By Mukesh Gupta | Patrika News

अलवर से एक कविता रोज: सोचा था जो बचपन में, लेखक- मुकेश गुप्ता अलवर

locationअलवरPublished: Oct 16, 2020 07:55:13 pm

Submitted by:

Lubhavan

सोचा था जो बचपन में सब कुछ पाना मुश्किल हो जाता हैकभी कभी लब पर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है
दिन रात गुजरे मेहनत में ,सपनो की ज्वाला धधकी होपल भर का ना चैन मिला हो, उदर भूखी अगन धधकी होसुनो फिर बचपन में लौट के जाना मुश्किल हो जाता हैकभी कभी लब पर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है

Alwar Se Ek kavita Roj Socha Tha Bachpan Me By Mukesh Gupta

अलवर से एक कविता रोज: सोचा था जो बचपन में, लेखक- मुकेश गुप्ता अलवर

सोचा था जो बचपन में सब कुछ पाना मुश्किल हो जाता है
कभी कभी लब पर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है

दिन रात गुजरे मेहनत में ,सपनो की ज्वाला धधकी हो
पल भर का ना चैन मिला हो, उदर भूखी अगन धधकी हो
सुनो फिर बचपन में लौट के जाना मुश्किल हो जाता है
कभी कभी लब पर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है
नन्हीं आंखों से मेले में , झूले वाले दिख जाते हैं
निर्धन की गाथा गालों पे, सूखे आँसू लिख जाते हैं
कर्ज चढा हो सिर पे , खाना खाना मुश्किल हो जाता है
कभी कभी लब पर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है
सपनों को सजने से पहले , स्वयं बिलबिलाते देखा हो
अपने ही रिश्तेदारों को , जब आँख चुराते देखा हो
बेदर्दों को “मुकेश” ये , दर्द दिखाना मुश्किल हो जाता है
कभी कभी लब पर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है
सोचा था जो बचपन में सब कुछ पाना मुश्किल हो जाता है।
कभी कभी लब ओर मुस्कान सजाना मुश्किल हो जाता है।।

स्वरचित /रचनाकार
मुकेश गुप्ता
(ग्रामविकास अधिकारी )
4/234 काला कुँआ
अलवर , राजस्थान ।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो