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अलवर से एक कविता रोज: वे हमेशा निर्मोही रहीं! लेखिका- पूनम त्यागी, अलवर

locationअलवरPublished: Oct 09, 2020 05:54:30 pm

Submitted by:

Lubhavan

वे तहेरी चचेरी मिलाकरकुल जमा दस बेटियाँ थींममेरी मौसेरी भी जोड़ दोतो पन्द्रह !और भी जोड़ते जाओ तो लगभग आधी आबादी!
कुछ पहली संतान थींशेष बेटों की आस में आईं !

Alwar Se Ek Kavita Roj: Ve Hamesha Nirmohi Rahi By Poonam Tyagi

अलवर से एक कविता रोज: वे हमेशा निर्मोही रहीं! लेखिका- पूनम त्यागी, अलवर

वे तहेरी चचेरी मिलाकर
कुल जमा दस बेटियाँ थीं
ममेरी मौसेरी भी जोड़ दो
तो पन्द्रह !
और भी जोड़ते जाओ
तो लगभग आधी आबादी!

कुछ पहली संतान थीं
शेष बेटों की आस में आईं !
कुछ एक और बेटा होने की आस में फिर आईं
और कुछ तो उस दवा को भी धत्ता बता के आईं
जो उनकी माँओं ने बेटा होने की गारंटी के साथ
खाई थीं!
वे हमेशा निर्मोही रहीं!

पालकों का प्रेम दुलार था
या बेटियों का भाग्य
वे सभी पाली गईं !

मानक शक्ल-सूरत में खरी न उतर पाने से
या ऊँची बोली न लगा पाने से
कुछ उम्रदराज हो चलीं
आह! अहो भाग्य!
फिर भी वे सभी ब्याही गईं !
हर छोटी अपने से बड़ी को देख सबक लेती रही
ईश्वर के घर से ही जगह को कसकर पकड़े रहने की घुट्टी पी कर आई थीं !
तभी तो बेटो की चाह में जबरन जगह बना पाईं
जब भी लगा अब टूटा तब टूटा
तब प्रेम रहा या मजबूरी
वे सब संभाल ले गईं !
ताकि पालकों का उतारा बोझ फिर से बोझ न बनें !
वें चिपकी रहीं उन दरवाजों की अन्दर की साँकल पकड़े
जहाँ वे भेजी गई थीं!
ईश्वर का वरदान था
साँकल छोडते ही दोनों तरफ के दरवाज़े बन्द हो जाएँगे !
पालकों के भी जहाँ से भेजी गईं !
पोषकों के भी जहाँ से निकाली गईं!

ईश्वर भी हमेशा निर्मोही रहा !
डा० पूनम त्यागी

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