या बेटियों का भाग्य
वे सभी पाली गईं ! मानक शक्ल-सूरत में खरी न उतर पाने से
या ऊँची बोली न लगा पाने से
कुछ उम्रदराज हो चलीं
आह! अहो भाग्य!
फिर भी वे सभी ब्याही गईं !
ईश्वर के घर से ही जगह को कसकर पकड़े रहने की घुट्टी पी कर आई थीं !
तभी तो बेटो की चाह में जबरन जगह बना पाईं
तब प्रेम रहा या मजबूरी
वे सब संभाल ले गईं !
ताकि पालकों का उतारा बोझ फिर से बोझ न बनें !
वें चिपकी रहीं उन दरवाजों की अन्दर की साँकल पकड़े
जहाँ वे भेजी गई थीं!
साँकल छोडते ही दोनों तरफ के दरवाज़े बन्द हो जाएँगे !
पालकों के भी जहाँ से भेजी गईं !
पोषकों के भी जहाँ से निकाली गईं! ईश्वर भी हमेशा निर्मोही रहा !