दरअसल अलवर जिले में रहने वाले फौजी की शादी साल 1990 में भरतपुर जिले की रहने वाली महिला के साथ हुई थी। शादी के बाद दम्पत्ति ने परिवार बढ़ाने की प्लानिंग की लेकिन परिवार बढ़ नहीं सका। उसके बाद ईलाज का दौर शुरू हुआ जो अब तक जारी है। इस बीच पति सेना से रिटायर भी हो गए और अब सरकारी बैंक में सिक्योरिटी अफसर लगे हुए हैं। उनका कहना है कि समाज में हर कोई यही पूछता था कि बच्चे क्यों नहीं हो रहे, मेरे साथ वाले लोगों के बच्चों की तो शादी तक हो गई, वे दादा – नाना तक बन गए।
पिछले 35 सालों से पत्नी का इलाज करा रहे हैं। उपर वाले पर भरोसा था। सब्र का ऐसा फल मिला कि दो साल पहले एक निजी अस्पताल की चिकित्सक ने बच्चे के लिए इलाज शुरू किया। आखिर अब शुक्रवार को परिवार में किलकारी गूंजी है। खुशी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।