अभी यह सुनिश्चित नहीं है कि कितना समय लगेगा। भाई नितिन ने बताया कि सौरभ शांत स्वभाव का है। अधिक घूमने फिरने का भी शौक नहीं है। गांव के खिलाडिय़ों को देखकर ही उसने शूटर बनने की ठानी। शुरूआत में परिवार को लगा कि कहीं इस खेल में पूरा समय खराब होता रहे और पढ़ाई भी नहीं कर सका तो आगे दिक्कत हो सकती है। लेकिन सौरभ के निश्चय को देखकर परिवार ने उसे मन लगाकर मेहनत करने की छूट दे दी। मैडल जीतने के बाद सरकार ने उसे 50 लाख रुपए और राजपत्रित अधिकारी की नौकरी देने की घोषणा कर दी है।
उनके कोच कुलदीप कुमार ने बताया कि समय मिला तो सौरभ दस से पंद्रह दिन में अलवर आ सकते हैं। मैडल जीतने के बाद अलवर के खिलाड़ी भी उनसे मिलने को उत्सुक हैं। सौरभ ने अलवर के इंदिरा गांधी स्टेडियम में अभ्यास करते हुए एशियन गेम में गोल्ड मैडल जीता है। इस उपलब्धि के बाद अलवर की महेन्द्रा कुमारी शूटिंग रेंज, यहां के कोच व खिलाड़ी भी चर्चा में आ गए हैं।
12 साल की उम्र में की थी शुरुआत सौरभ चौधरी ने 12 साल की उम्र से ही निशानेबाजी की शुरुआत कर दी थी। उन्होंने सबसे पहले बागपत स्थित वीर शाहमल राइफल क्लब से अपने कॅरियर की शुरूआत की । उनके पहले कोच अमित श्योराण हैं। साई सेंटर के उनके कोच कुलदीप सिंह ने बताया सौरभ काफी मेहनती और उम्मीद है कि वह और सफलता हसिल करेंगे। उन्होंने 2016 में अलवर स्थित साई सेंटर में ट्रायल दिया और चयनित होने के बाद एशियन गेम्स में जाने तक यहीं अभ्यास करते रहे हैं।