बबीता अलवर शहर के साउथ वेस्ट ब्लॉक की रहने वाली है। इनके पिता बिहारी लाल सेना में काम करते थे। मम्मी ललिता देवी भी बेटियों का शोषण बर्दाश्त नहीं करती। माता और पिता दोनों ने ही बबीता को अच्छी शिक्षा के लिए प्रेरित किया। एमएससी साइकोलॉजी में करने के बाद 2005 में कानून की पढ़ाई पूरी की और अनवर अदालत में प्रैक्टिस शुरू कर दी। वह बताती है कि स्कूली शिक्षा से लेकर एलएलबी की शिक्षा तक का सफर करना बहुत मुश्किल था। जातिगत भेदभाव के चलते स्कूल में जहां लड़कियां अपने पास बैठाना पसंद नहीं करती थी ।उनके साथ खेलती नहीं थी तो वह समझ गई कि अलग पहचान बनानी होगी। एलएलबी के बाद जब प्रैक्टिस के लिए पहुंची तो यहां भी अदालत में कोई अधिवक्ता उन्हे अपना जूनियर बनाने को तैयार नहीं था। ऐसे में वरिष्ठ महिला अधिवक्ता राजश्री अग्रवाल व वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश चंद्र कौशिक ने उनको जूनियर बनाया और आज यह समाज की महिलाओं के लिए कानून की लड़ाई लड़ रही है। इन्हीं के प्रयास है कि अब जो लड़कियां वकालत में प्रैक्टिस करती है दलित समाज की उनके साथ सम्मान व्यवहार किया जाता है।
वह बताती है कि शादी के बाद का सफर पति इंद्रेश लोहेरा के सहयोग से आगे बढ़ा। पति ने भी एलएलबी की पढ़ाई की और वह भी अदालत में प्रैक्टिस के लिए आने लगे। आज बबीता घरेलू और पारिवारिक मामलों के अलावा समाज की बेटियों को आगे बढ़ने के लिए उनकी मदद करती है। वर्तमान में अखिल भारतीय वाल्मीकि महापंचायत के प्रदेश अध्यक्ष पद पर है । इसके साथ ही राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस कमेटी प्रदेश महासचिव भी बन गई है। वह बताती है कि जो लोग कभी उनको पास नही बैठाते थे ।वह आज उनके साथ हर हर काम में साथ चलते हैं।