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मेलों पर रोक से बदली जंगल की आबोहवा, पर्यावरण निखरा

locationअलवरPublished: Oct 13, 2021 01:44:36 am

Submitted by:

Pradeep

वन्यजीव भी शहर से जंगल को लौटेपॉलीथिन कचरे से मिली मुक्ति तो पर्यावरण में हुआ सुधा

मेलों पर रोक से बदली जंगल की आबोहवा, पर्यावरण निखरा

मेलों पर रोक से बदली जंगल की आबोहवा, पर्यावरण निखरा

प्रदीप यादव
अलवर. कोरोना संक्रमण के चलते पिछले दो वर्षों से करणीमाता सहित जिले में प्रमुख मेलों का आयोजन नहीं हुआ है, इससे लोगों की भावना तो आहत हुई, लेकिन जंगल की आबोहवा जरूर सुधर गई। लगातार चौथी बार नौ दिन तक भरने वाला करणी माता का लक्खी मेला स्थगित करने से सरिस्का के अलवर बफर जोन स्थित बाला किला जंगल में न तो पॉलीथिन का कचरा दिखाई दिया और न ही लोगों की ओर से वन्यजीवों को डाला जाने वाला चुग्गा। इसका असर यह हुआ कि शहर की ओर रूख करने वाले सांभर व अन्य वन्यजीव फिर से जंगल की ओर लौटते दिखाई दिए।
सरकार ने कोरोना संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए प्रमुख मेलों और अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन की अनुमति नहीं दी। यही कारण रहा कि साल में दो बार भरने वाला करणी माता का लक्खी मेला चौथी बार स्थगित करना पड़ा। मेला नहीं भरने से नौ दिन तक प्रतापबंध से लेकर बाला किला में लोगों की आवाजाही पर पाबंदी है। लोगों के मंदिर और बालाकिला तक नहीं पहुंचने से गंदगी नहीं फैल रही है। कोरोना से पहले मेले के दौरान एक दिन हजारों श्रद्धालुओं का आना जाना रहता था। श्रद्धालु वहां खाने पीने की वस्तुएं, पॉलिथिन आदि फेंक कर गंदगी फैलाते थे, वन क्षेत्र का पर्यावरण भी प्रदूषित हो जाता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। लोगों के मंदिर तक जाने पर लगी पाबंदी से साफ सफाई देखी जा सकती है।

आबादी क्षेत्र से दूर हुए जानवर
पहले नवरात्र के दौरान लोग खाने पीने की वस्तुएं जंगल जानवरों को डाल देते थे। जिससे ये जानवर आबादी क्षेत्र में दस्तक देने लगे। कलक्टे्रट परिसर तक इन जानवरों को विचरण करते देखा गया है। करणी माता का मेला नहीं भरने से मानवीय दखल कम हो गया, जिससे ये जानवर कम ही आबादी क्षेत्र में आ रहे हैं।

पर्यावरण हुआ शुद्ध
मेले के दौरान नौ दिन तक हजारों लोगों का करणी माता मंदिर और बाला किला तक हस्तक्षेप था। नौ दिन तक लोगों की आवाजाही और वाहनों की रेलमपेल से वन क्षेत्र के पेड़ पौधों और हरियाली को भी नुकसान होता था, लेकिन अब मेला नहीं भरने से सरिस्का का वन क्षेत्र हरियाली से लदकद है। बाला किला जंगल के पर्यावरण में भी काफी सुधार हुआ।

गंदगी से मिली निजात
कोरोना से पहले मेले के दौरान गंदगी से सामना करना पड़ता था। मंदिर में प्रसाद चढ़ाने वाले श्रद्धालु, दुकानदार पॉलीथिन सहित अन्य खराब वस्तुएं फेंक देते थे, जिससे नौ दिन तक गंदगी से रूबरू होना पड़ता था। पॉलीथिन व अन्य वस्तुएं खाने से जंगली जानवरों को भी जान का खतरा बना रहता था।
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