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बिना आंखों के प्रधानमंत्री का घर भी अंधेरे में रह गया नेत्रहीन परिवार

locationअलवरPublished: Jun 19, 2019 12:38:38 pm

Submitted by:

Hiren Joshi

सरकार के एक पत्र ने अंधेरे में जी रहे परिवार के लिए उम्मीद की रोशनी जगा दी। लेकिन इस पत्र को पढऩे के लिए किसी के पास आंखें ही नहीं थी। जब पत्र की सच्चाई मालूम चली तो बहुत देर हो गई और यह परिवार सरकार की आवास योजना से वंचित रह गया। अब इस परिवार के पास पछताने के सिवाय कुछ नहीं बचा है।

blind house of the eyes of the blind without blind eyes

बिना आंखों के प्रधानमंत्री का घर भी अंधेरे में रह गया नेत्रहीन परिवार

सरकार के एक पत्र ने अंधेरे में जी रहे परिवार के लिए उम्मीद की रोशनी जगा दी। लेकिन इस पत्र को पढऩे के लिए किसी के पास आंखें ही नहीं थी। जब पत्र की सच्चाई मालूम चली तो बहुत देर हो गई और यह परिवार सरकार की आवास योजना से वंचित रह गया। अब इस परिवार के पास पछताने के सिवाय कुछ नहीं बचा है। अलवर जिले के कठूमर तहसील के भोजपुरा गांव में रहने वाले भर्तृहरि सैन का पूरा परिवार ही नेत्रहीन है

१३ फरवरी २०१९ को ग्रामीण पंचायती राज विभाग की ओर से एक पत्र आया जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गंाव खेड़ा मैदा के लिए आवेदन करने के लिए कहा गया था। पिता अनपढ़ और परिवार के शेष सदस्य नेत्रहीन है तो कोई भी इस पत्र को पढ़ नहीं पाया और कागज को उठा कर रख दिया। गरीबी के चलते ये अपनी आंखों का उपचार भी नहीं करवा पा रहे हैं। झोपड़ी भी जलकर हुई राख इस परिवार में छह सदस्यों में मां के साथ साथ भाई मुरारी, रामवीर, दशरथ व लाली जन्म से ही नेत्रहीन हैं। पिता भर्तृहरि मजूदरी करते थे लेकिन बीमारी के चलते अब वह भी नहीं कर पा रहे हैं। एेसे में परिवार का पेट भरना भी मुश्किल हो गया है। यह परिवार गांव में कच्ची झोपड़ी में ही जीवन बसर कर रहा था, लेकिन भगवान को ये भी मंजूर नहीं था।
पिछले माह ही २८ मार्च को इनके कच्चे छप्परों में आग लगने से सब कुछ जलकर राख हो गया। अपने जलते हुए घर को बचाने में नेत्रहीन रामवीर भी बुरी तरह से जख्मी हो गया। लेकिन इस हादसे के बाद प्रशासन ने आज तक इनकी कोई मदद नहीं की है। एेसे में ये परिवार दाने दाने को मोहताज हो गया है। छात्रवृत्ति से भी वंचित कर दिया रामवीर ने आठवी तक की शिक्षा तो पूरी कर ली है वह आगे भी पढऩा चाहता है। लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव खेड़ा मैदा जाना पड़ता है, नेत्रहीन होनेे के कारण गांव से पांच किलोमीटर तक जाना संभव नहीं है इसलिए स्कूल भी नहीं जा पा रहा । स्कूल के प्रिंसिपल से सरकार से मिलने वाली छात्रवृत्ति देने से भी इंकार कर दिया। बिना पैसे के पढऩा और भी मुश्किल हो गया है।

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