अलवर जिल के बहरोड़ कस्बे का सबलपुरा मोहल्ला पूर्व में एक गांव था। इसी गांव में पं. विशम्भर दयाल शर्मा रहते थे। पिता की मृत्यु के बाद उनके दादा विशम्भर दयाल शर्मा को दिल्ली ले गए। शर्मा के दादा उन दिनों दिल्ली में गाडोलिया बैंक में नौकरी करते थे। दिल्ली में रहते विशम्भर दयाल शर्मा ने बीएससी परीक्षा पास की और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए, लेकिन क्रांतिकारी विचारों के चलते वे नरम दल के बजाय क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजार, सरदार भगतसिंह, सुखदेव, रामप्रसाद विस्मिल के सम्पर्क में आए। वर्ष 1912 में दिल्ली में वायसराय लार्ड हेस्टिंग के जुलूस पर बम फेंकने की घटना हुई। इसमें वायसराय तो बच गए, लेकिन उनका महावत मारा गया। इस घटना में विशम्भर दयाल शर्मा भी शामिल रहे। इस कारण अंग्रेज शासन की सीआईडी और पुलिस पं. विशम्भर दयाल शर्मा के पीछे लग गई। बाद में वे रिवोशनरी सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए और चन्द्रशेखर आजाद व भगतसिंह के सम्पर्क में आए। बाद में गाडोलिया बैंक लूट की घटना हुई, उसमें भी शर्मा की संलिप्तता मानी गई।
इसी दौर में पं. विशम्भर दयाल शर्मा के साथ चन्द्रशेखर आजाद व भगतसिंह आदि क्रांतिकारी बहरोड़ के गांव सबलपुरा आए। उन्होंने यहां बम बनाए एवं बम बनाने आदि गतिविधियों का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के दौरान एक बम फूट गया, जिससे सबलपुरा गांव स्थित हवेली का एक हिस्सा ढह गया। हवेली का वह ढहा हिस्सा आज भी कायम है। बाद में काकोरी केस में फंसे भगतसिंह, सुखदेव आदि को जेल से बाहर निकालने की उन्होंने योजना तैयार की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई और 24 दिसम्बर 1931 को पं. विशम्भर दयाल शर्मा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उन्होंने पुलिस गिरफ्त में अपने जख्म पर लगे टांकों को फाड़ दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
आज भी पं. विशम्भर दयाल शर्मा की स्मृति में बहरोड़ में पार्क है, जहां उनकी मूर्ति लगी है, जो कि शर्मा व चन्द्रशेखर आजाद की अलवर से जुड़ाव की यादें ताजा करती हैं। अलवर के इतिहास के जानकार एडवोकट हरिशंकर गोयल बताते हैं कि चन्द्रशेखर आजाद का अलवर जिले से गहरा नाता रहा था। पं. विशम्भर दयाल शर्मा के साथ वे एक बार बहरोड़ के सबलपुरा गांव आए और बम बनाने आदि का प्रशिक्षण भी लिया।