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आम के बगीचों के स्थान पर कॉलोनियां हो रही विकसित, पेड़ों की कटाई व जमीन की सौदेबाजी से संख्या रह गई कम…पढ़ें यह न्यूज

कई बगीचों का नामों निशान मिट चुका है, तो कई मिटने के कगार पर। आसपास के क्षेत्रों में कैरी उत्पादन में विशेष पहचान बना चुका राजगढ़ अब खोने लगा है पहचान।

अलवरJun 12, 2024 / 12:32 am

Ramkaran Katariya

राजगढ़. आसपास के क्षेत्रों में कैरी उत्पादन में विशेष पहचान बना चुका राजगढ़ अब पहचान खोने लगा है। पेड़ों की अन्धाधुंध कटाई एवं मोटी रकम के लालच में जमीन की सौदेबाजी से क्षेत्र में बगीचों की संख्या कम रह गई। कई बगीचों का नामों निशान मिट चुका है, तो कई मिटने के कगार पर है। बगीचों के स्थान पर कॉलोनियां विकसित हो रही है।
वैसे गुणात्मक दृष्टि में बेहतर होने के कारण अचार के लिए राजगढ़ की कैरी लोगों की पहली पंसद रही है। कैरी की बढ़ती मांग के बीच लोगों ने आम के बाग लगाए। क्षेत्र में कैरी के अच्छे उत्पादन के चलते बड़ी संख्या में लोगों ने अचार बनाने के कुटीर उद्योग लगा लिए। राजगढ़ कस्बे सहित आसपास के गांवों में लगभग तीस बाग थे। इनमें से अधिकांश स्थानों को वर्तमान में बाग के नाम से ही जानते हैं, लेकिन वहां कैरी के पेड़ ही नहीं। बागों की संख्या कम होने का नतीजा यह रहा कि क्षेत्र में कैरी का उत्पादन प्रति वर्ष घट रहा है। इसी कारण अब यहां से बाहर भेजी जाने वाली कैरी की मात्रा में भी कमी आई है।
पानी के अभाव में सूख गए पेड़

ग्रामीणों का कहना है कि लगभग पैतीस वर्ष पूर्व राजगढ़ कस्बे के बाग हरियाली से आच्छादित थे। जहां कैरी, आम के अलावा जामुन, खिरनी, बोसली सहित अन्य फल भारी तादाद में पैदा होते थे। समय के साथ बागान उजड़ गए तथा सैकड़ों पेड़ों को लकडी तस्करों ने काट दिया। इसके अलावा वर्षा के अभाव में सैकड़ों पेड़ सूख गए। वर्तमान में कई बागों का सिर्फ नाम रह गया है। वहां आजकल सघन आवासीय बस्तियां बन गई है।
मौसम की मार से आहत

असामान्य मौसम के चलते इस साल कैरी का आकार छोटा-बडा सा रहा है। इस वर्ष की कैरियों के पेड़ों पर बगर(पोक) बड़ी मात्रा में आया, लेकिन तेज धूप, अंधड, लू चलने के कारण पोक व कच्चे फल पेड़ों से झड़ गए। इससे बाग मालिक व ठेकेदारों को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है।
ये बोले ठेकेदार

कैरी के ठेकेदार छोटेलाल कोली ने बताया कि कैरी के बगर व कच्चे फल झड गए तथा पीली पड़कर कैरियां झड़ रही है। कैरियों को झड़ने से बचाने के लिए साढ़े पांच सौ-साढे पांच सौ रुपए के पानी के टेंकर मंगवाकर कैरियों के पेड़ में डलवा चुके। एक लाख में करीब एक दर्जन पेड़ एक वर्ष के लिए ठेके पर लिए हैं। करीब पचास प्रतिशत नुकसान हुआ है। ठेकेदार मुरली कोली का कहना है उसने कैरी के 40 पेड ठेके पर लिए। करीब साढ़े बाइस हजार का नुक़सान होने के साथ मजदूरी पर पानी फिर गया है। कैरी का वर्तमान में दस से बीस रूपए प्रति किलो का भाव चल रहा है। ठेकेदार रमेश कोली का कहना है कि उसने कैरियों के दो बागों का ठेका 1 लाख 72 हजार का लिया है। उसे भी करीब 80 हजार का नुकसान हुआ है। मौसम की मार के चलते इस वर्ष कैरियों का उत्पादन अपेक्षा के अनुरूप बहुत ही कम रह गया। बारिश के में कैरियों का आकार बढने के संभावना है।

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