अलवर

कपास की खेती ने अलवर के किसानों का घर सूना होने से रोका, पहले जाना पड़ता था यूपी-हरियाणा, अब जिले में अच्छी पैदावार

अलवर जिले के किसानों को पहले अन्य प्रदेशों में कपास के खेतों मे काम करने जाना पड़ता था, लेकिन अब जिले में ही अच्छी पैदावार से किसानों को फायदा मिल रहा है।

अलवरSep 20, 2019 / 09:49 am

Dharmendra Yadav

कपास की खेती ने अलवर के किसानों का घर सूना होने से रोका, पहले जाना पड़ता था यूपी-हरियाणा, अब जिले में अच्छी पैदावार

अलवर. कपास खेती की रवायत बदलने से जिले के हजारों मजदूरों का उत्तरप्रदेश और पंजाब में होने वाला सालाना अल्पकालिक प्रवास थम गया है। इसके अलावा कपास की खेती का रकबा पांच साल पहले के छह हजार हैक्टेयर के मुकाबले 42 हजार हैक्टेयर होने से किसानों की माली हालत में भी भारी बदलाव देखने को मिल रहा है।
पिछले पांच सालों से अलवर में कपास की रिकॉर्ड खेती हो रही है। इससे हर साल सितम्बर, अक्टूबर व नवम्बर में पंजाब व उत्तरप्रदेश जाने वाले खेत मजदूर परिवार अब जिले में ही कपास की लावणी करके पेट पाल लेते हैं।
42 हजार हैक्टेयर में खेती

पूरे जिले में इस बार करीब 42 हजार हैक्टेयर में कपास की खेती है। जबकि पिछले साल 32 हजार हैक्टेयर से भी कम क्षेत्र में कपास थी। औसतन एक साल में 7 हजार हैक्टेयर से अधिक जमीन पर कपास की खेती बढ़ी है। पांच साल पहले जिले में मुश्किल से 6 हजार हैक्टेयर में भी कपास की खेती नहीं थी। अच्छे भाव रहे तो अगले साल 50 हजार हैक्टेयर से अधिक जमीन पर कपास की खेती हो सकेगी। यदि पानी की समस्या नहीं हो तो अलवर में कपास की खेती बाजरे से भी आगे जा सकती है।
नरमा तोडऩे जाते थे मजदूर

स्थानीय बोली में कपास की फसल की लावणी को नरमा तोडऩा बोला जाता है। करीब दस साल पहले बड़ी संख्या में गांवों से मजदूरी करने वाले परिवार पंजाब व उत्तरप्रदेश चले जाते थे। वहां दिन-रात मजदूरी करते। फिर वापस आते। इस बीच घर पर ताला लगाकर उसे पूरी तरह कपड़े से लपेटकर सील करके जाते थे। जिन परिवारों के बच्चे स्कूल-कॉलेजों में जाते उनमें से आधे पढ़ाई छोडकऱ परिवार के साथ मजदूरी को निकल जाते थे। कुछ परिवारों के बच्चे जरूर पढ़ाई के कारण घर पर रुकते थे।
कपास से अधिक आय
किसानों को बाजरे की तुलना में कपास की खेती से अधिक आय मिलती है। कपास का भाव भी बाजरे से कई गुना अधिक रहता है। किसान रामावतार ने बताया कि अच्छी कपास हो जाए तो एक बीघा में 45 हजार रुपए से अधिक की कपास हो जाती है। बाजारा इतने का नहीं हो पाता है। अब हर किसान कपास की खेती करने लगा है।

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