सरिस्का में बाघों के संरक्षण के लिए गांवों का विस्थापन जरूरी है। यही कारण है कि राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण, भारतीय वन्यजीव संस्थान, स्टैंडिंग कमेटी, स्टेट बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ समेत न्यायालय एवं सरकार सरिस्का से गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश दे चुकी है। पिछले दिनों सरिस्का में स्टैंडिंग कमेटी की मीटिंग के बाद कमेटी अध्यक्ष अजीत सिंह ने भी कहा कि गांवों के विस्थापन बिना सरिस्का को खुशहाल रखना संभव नहीं है। इसके बावजूद सरिस्का में विस्थापन के कार्य में तेजी नहीं आ पाई।
यह है सरिस्का में विस्थापन का गणित सरिस्का बाघ परियोजना क्षेत्र में बसे 29 गांवों में से अब तक केवल तीन गांव उमरी, भगानी व रोटक्याला का पूरी तरह विस्थापन हो पाया है। अभी डाबली, सुकोला, कांकवाड़ी, क्रास्का, हरिपुरा व देवरी का विस्थापन लक्ष्य अधूरा ही है।
वर्ष 2008 से 11 के बीच हुए सर्वे में इन 9 गांवों के 973 परिवारों को विस्थापन के लिए चयनित किया गया था। इनमें से अब तक केवल 660 परिवार ही विस्थापित हो पाए हैं। शेष 313 परिवार अब तक सरिस्का में जमे हैं।
वर्ष 2008 से 11 के बीच हुए सर्वे में इन 9 गांवों के 973 परिवारों को विस्थापन के लिए चयनित किया गया था। इनमें से अब तक केवल 660 परिवार ही विस्थापित हो पाए हैं। शेष 313 परिवार अब तक सरिस्का में जमे हैं।
राजस्व रिकॉर्ड में खातेदारी दर्ज करने के निर्देश जिला कलक्टर राजन विशाल व सरिस्का के सीसीएफ डॉ. गोविंदसागर भारद्वाज ने गत दिनों विस्थापित परिवारों में मिलकर उनकी समस्याओं की जानकारी ली। इस दौरान विस्थापित परिवारों ने अब तक जमीन की खातेदारी नहीं मिलने की बात कही। इस पर जिला कलक्टर ने विस्थापित परिवारों को जमीन का खातेदारी हक दिलाने का भरोसा दिलाया।
सरिस्का प्रशासन की है जिम्मेदारी सरिस्का में गांवों के विस्थापन की जिम्मेदारी सरिस्का प्रशासन की है। बकायदा इसके लिए सरिस्का में अलग से अधिकारी व कर्मचारी नियुक्त है। इसके बावजूद एक दशक से सरिस्का में विस्थापन प्रक्रिया गति नहीं पकड़ पाई है। इसका कारण है कि गांवों के विस्थापन को लेकर चर्चा तो खूब हुई, लेकिन प्रयास अधूरे रहे। वहीं विस्थापन प्रक्रिया में लगे अधिकारी व कर्मचारियों को अन्य कार्य में व्यस्त रखने का खमियाजा भी विस्थापन प्रक्रिया को उठाना पड़ा। वर्तमान में सरिस्का में विस्थापन प्रक्रिया को गति देने के लिए एक डीएफओ को अलग से प्रभार दिया गया है, लेकिन ये प्रभारी अधिकारी निजी कारणों के चलते पिछले दिनों लंबे अवकाश पर रहीं, इससे भी विस्थापन प्रक्रिया की गति धीमी पड़ी। विस्थापन प्रक्रिया की यह हालत तो तब है, जब इस कार्य के लिए बजट की कमी नहीं है। स्थिति यह है कि बजट का उपयोग नहीं होने के कारण आवंटित राशि भी वापस लौट रही है।