प्रायोगिक परीक्षाएं अलवर जिले के ६०० से अधिक स्कूलों में हुई जिनमें सरकारी स्कूल ९० थे जबकि अन्य शेष गैर सरकारी स्कूल हैं। जिले में करीब २० सरकारी स्कूल तो एेसे हैं जिनमें क्रमोन्नत होने के बाद अभी तक प्रयोगशाला ही नहीं बनी हैं। बोर्ड की प्रायोगिक परीक्षाओं के लिए बोर्ड की ओर से अन्य स्कूलों के परीक्षक लगाए गए थे। कई गैर सरकारी स्कूलों में तो वर्ष भर प्रायोगिक परीक्षाएं ही नहीं की गई जबकि उनमें विज्ञान, भूगोल और गृह विज्ञान की प्रायोगिक परीक्षाएं तक हुई हैं।
इन परीक्षाओं में परीक्षकों को इसकी जानकारी है। जिले में करीब २०० गैर सरकारी स्कूलों में तो गृह विज्ञान चल रही है जो लडक़ों का प्रिय विषय बन रहा है। इस गृह विज्ञान की प्रायोगिक परीक्षा में अच्छे अंक आने के कारण इसे स्कोरिंग विषय माना जाने लगा है, इसके चलते अब छात्राओं के साथ छात्र भी इस विषय को लेने लगे हैं। कहने को बोर्ड की ओर से प्रायोगिक परीक्षाओं में उडऩ दस्ता बनाया जाता है लेकिन यह दस्ता २० प्रतिशत स्कूलों में भी नहीं जा पाता है। कई गैर सरकारी स्कूलों के छात्र होम साइंस लेकर प्रेक्टिकल में इतने अच्छे अंक पाते हैं, जिसके हिसाब से वे कुकिंग में पूरी तरह पारंगत हैं लेकिन स्थिति इसके विपरीत होती है। यदि इनसे चाय की बनाने को कहा जाए तो यह बना नहीं पाएंगे। ये कक्षा में पढ़ाई के साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रवेश की तैयारी करते हैं, इसके चलते यह होम साइंस जैसे विषय का चयन करते हैं।
इस बारे में जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक राकेश शर्मा का कहना है कि प्रायोगिक परीक्षाओं में उडऩ दस्ते ने कई जगह निरीक्षण भी किया था। सरकारी स्कूल में प्रयोगशाला नहीं होने पर समीपवर्ती स्कूल में जाकर प्रयोग करवाए जा सकते हैं।