चौपाल में किसानों ने कहा कि भूमि का जलस्तर लगातार गिर रहा है। इससे पानी की कमी होने लगी है। किसान बोरिंग कराने के लिए कर्ज लेकर काम चलाता है। ऐसे में उस बोरिंग में पानी नहीं होने पर किसान कर्ज में डूब जाता है। इसके चलते किसानों का अब खेती से मोहभंग हो रहा है। ऐसे में सरकार को खेतों की सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था करनी चाहिए।
बिजली की किल्लत किसानों ने बताया कि खेती के लिए किसान को पर्याप्त मात्रा में बिजली की आपूर्ति चाहिए, लेकिन बिजली निगम के अधिकारियों की मनमानी के चलते किसानों को तीन से चार घंटे ही बिजली की आपूर्ति हो पाती है। इसके चलते फसल सूख जाती है। वही किसानों ने बताया कि अगर खेती के सीजन के समय किसी किसान का ट्रांसफार्मर जल जाए तो निगम अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। किसान से मोटी रकम लेकर ट्रांसफार्मर दिया जाता है।
औने-पौने दाम में बेचनी पड़ती है फसल किसानों ने बताया कि सरकार के अधिकारी व नेता कुर्सियों पर बैठकर जब चाहे खुद का वेतन और मानदेय बढ़ा लेते है, लेकिन किसान की समस्या पर कोई ध्यान नहीं देता। किसान को उसकी मेहनत की कमाई को औने-पौने दामों में बेचना पड़ता है। फसल को तैयार करने में किसान को दिन-रात एक कर मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन फिर भी मजदूरी नहीं मिल रही।
अनुदान की दी जानकारी चौपाल में सहायक कृषि अधिकारी अशोक मीना ने किसानों की प्रमुख समस्याओं को सुना व समाधान किया। उन्होंने किसानों को खेतों में पानी एकत्र करने के लिए फॉर्म पौण्ड बनाने की बात कही। इसके लिए सरकार की ओर से 52 हजार 500 रुपए कर अुनदान दिया जा रहा है।
सिकराय कृषि पर्यवेक्षक मुकेश बैरवा ने किसानों को बताया कि खेतों में अधिक से अधिक जैविक खाद का उपयोग करने पर जमीन बंजर नहीं होती। किसान खेतों में कृषि अवशेषों को जलाएं नहीं, इनको खाद के रूप में काम लें।
किसानों की जुबानी शिवचरण सैकड़ा का कहना था कि मंडियों में आड़तियों के द्वारा आड़त के नाम पर किसानों को लूटा जा रहा है। कई बार विभाग के अधिकारियों को भी अवगत करा दिया, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सब्जी व फलों को बेचने के लिए मंडियों में 6 प्रतिशत तक आड़त देनी पड़ रही है। इस पर रोक लगानी चाहिए।
तेजराम मीना ने कहा कि फसल बीमा के नाम पर किसानों के साथ हो रहे धोखे को बंद किया जाए। बीमा कंपनियों की मिलीभगत से सीधे बैंक खातों से प्रीमियम जमा कर लिया जाता है, जबकि फसल के खराब होने कोई बीमा कंपनी किसान को राहत नहीं देती है।
पवन गुर्जर का कहना था कि उपखण्ड मुख्यालय पर सरकार की ओर से फसल भण्डारण की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को खराब होने के डर से फसल को उचित मूल्य आने से पूर्व ही बेचना पड़ता है या फिर घर में रखना पड़ता है। इससे फसल के खराब होने का खतरा रहता है।
पंकज मीना का कहना था कि जैविक उत्पादों की जांच की सुविधा नहीं होने के कारण कड़ी मेहतन करने के बाद भी उचित मूल्य नहीं मिलता है। इससे किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
रमसीराम मीना का कहना था कि पहले किसानों को कृषि यंत्रों पर 90 प्रतिशत तब सब्सिडी दी जाती थी, लेकिन अब उसे घटाकर 70 प्रतिशत ही कर दिया। यह किसानों के हितों पर कुठारघात है।
महाराजसिंह गुर्जर ने बताया कि फसल की लागत के अनुसार समर्थन मूल्य तय होने चाहिए। किसान महंगे दामों में खाद-बीज खरीदने के बाद कड़ी मेहनत कर फसल को तैयार करता है, उसके बाद भी बाजार में उसे उचित मूल्य नहीं मिलता। किसान से व्यापार करने वाला दुकानदार मोटे मुनाफे के साथ व्यापार कर रहा है।