वर्ष २०१८ में अलवर जिले में करीब ४३६९ मामले सामने आ चुके हैं। इसमें से २१० मामले अति गंभीर है। यदि समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह आंकडें़ बहुत बढ़ सकते हैं। जिले की ४४ लाख की जनसंख्या के अनुसार यहां सुविधाएं बढ़ाने की जरुरत है। साथ ही टीबी रोगी को खांसते व छींकते समय जागरुक रहने की जरुरत है तभी इस रोग में कमी आएगी।
सुविधाओं का मोहताज अलवर का टीबी अस्पताल: जिला मुख्यालय पर आज तक टीबी चिकित्सालय की सुविधा नहीं मिल पाई है। यहां चिकित्सालय के रूप में एक टीबी क्लीनिक चल रहा है। जिसमें साधन व सुविधाओं का भारी अभाव है। यहां प्रतिदिन करीब ६० मरीज जांच के लिए आते हैं लेकिन इनके बैठने तक की व्यवस्था नहीं है। भवन करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। जो पूरी तरह से जर्जर व कंडम हो चुका है। यहां एक ही विंडों है जिसमें मरीजों को तीन तीन जांच करवानी पडती है। इस पर घंटों तक कतार लगी रहती है। यहां कभी पानी नहीं आता तो कभी लाइट चली जाती है। स्टाफ की तंगी हर समय यहां बनी रहती है।
टीबी दो प्रकार से होती है साधारण व एमडीआर। एमडीआर रोगियों की जांच के लिए सीबीनॉट मशीन की आवश्यकता होती है। जो कि वर्तमान में केवल जिला क्षय निवारण केंद्र अलवर एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बहरोड में ही उपलब्ध है। जनसंख्या के अनुपात में यह कम है।
जिला क्षय रोग अधिकारी से बातचीत:
टीबी मुख्य रुप से श्वसन रोग है जो खांसने, छींकने व थूकने से होता है। यह फेंफडों के अलावा शरीर के अन्य किसी भी भाग में भी हो सकती है। ज्यादातर फेंफडे, गले, पेट में गांठ, छाती में पानी, पेट में पानी, सिर में बुखार एवं रीढ़ की हड्डी की टीबी के रूप में होती है। टीबी से बचाव के लिए जन्म के समय बीसीजी का टीका लगाया जाता है। लेकिन यह १०० प्रतिशत रोकथाम में कारगर साबित नहीं है। इसलिए टीबी से बचाव के लिए बलगम थूकते समय, खांसते समय सावधानी रखने की जरुरत है। लगातार खांसी, बुखार, भूख न लगने, वजन कम होने के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।