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बराबर का वोट अधिकार फिर भी घूंघट की दरकार

locationअलवरPublished: Jan 22, 2020 09:33:45 pm

Submitted by:

Subhash Raj

अलवर. घूंघट को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री ने हाल ही गहरी चिंता जताई लेकिन उसका प्रदेश के रुढ़िवादी समाज पर कोई असर नहीं है। घूंघट गांवों में पितृसत्तात्मक समाज की ऐसी सच्चाई है जिसे चुनाव जीत कर गांव की सरकार चलाने वाली सरपंच भी यकायक दरकिनार नहीं कर पाती। जिले में पंचायत राज संस्थाओं के चुनाव के दूसरे चरण में गांवों के मतदान केन्द्रों पर दिन भर घूंघट की बहार रही। गरीब से लेकर अमीर परिवारों तक की महिलाओं ने घूंघट की ओट से ही लोकतंत्र में अपने वोट की आहुति डाली।

बराबर का वोट अधिकार फिर भी घूंघट की दरकार

बराबर का वोट अधिकार फिर भी घूंघट की दरकार

गांव की सरकार के चुनाव के दिन आधी आबादी यानी महिलाएं घूंघट में नजर आई। भले ही पंचायत चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दे दिया हो लेकिन, अब भी गांवों में महिलाओं के चेहरे से घूंघट नहीं हट सका है। वोट डालने वाली 80 प्रतिशत से अधिक महिलाएं घूंघट में आई। बुजुर्ग महिलाओं के अलावा बहुत कम महिलाएं बिना घूंघट के दिखी। परसाका बास, कैरवाड़ा व बीजवाड़ में कुछ महिला प्रत्याशियों से भी पत्रिका ने बातचीत की। अधिकतर ने यही कहा कि अभी गांवों में घूंघट है। पूरी तरह से हटाना मुश्किल है। लेकिन, पढ़ी-लिखी महिलाएं कम घूंघट करती हैं।
परसा का बास में महिला प्रत्याशी ने कहा कि वे पिछले पांच साल सरपंच रही हैं। खुद कतई घूंघट नहीं करती है। वार्ड पंच महिलाओं को भी घूंघट नहीं करने के लिए प्रेरित करती रही हैं। जिसके कारण कई पंच महिलाओं ने हर समय घूंघट करना छोड़ दिया है। यहां गांव में तो ये हाल है। महिला का महिला से भी घूंघट का रिवाज है। यहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने कहा कि अब पहले से कम घूंघट करने लगे हैं। चुनाव में महिलाओं को
बराबर का अधिकार दिया है। लेकिन, अब भी घूंघट को महिला की लाज के रूप में देखा जाता है लेकिन, अब धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है। सामान्य महिलाओं के अलावा चुनाव लड़ रही महिला प्रत्याशी भी घूंघट में नजर आई।
इधर आजादी के साथ ही सरपंच बनाते आ रहे कैरवाड़ा ग्राम पंचायत के बुजुर्ग बूथ से काफी दूर टोली बनाकर हुक्के के साथ बैठे दिखे तो उनसे चुनावी चर्चा हो गई। सालों पहले और आज के चुनावों में अन्तर को बुजुर्गों से जानना चाहा तो एक बुजुर्ग ने सिर पर हाथ रख कर कहा, वो भी एक जमाना था। ये भी एक जमाना है। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है करीब, 40 साल पहले तक ऐसा होता रहा है कि गांव के कुछ लोगों ने मिलकर किसी एक व्यक्ति के सिर पर पगड़ी रख दी, मतलब वही सरपंच बन गया। आज कल की युवा पीढ़ी ने तो पूरा चुनाव ही बिगाड़ दिया। अब चुनाव के दिनों में इतनी तनातनी हो जाती है कि गांवों में धड़े बंट जाते हैं। इसके अलावा चुनावी खर्च की पूछो मत। लाखों से कम तो शायद ही किसी ग्राम पंचायत के एक प्रत्याशी का खर्चा हो। बहुत से गांव तो ऐसे हैं जहां करोड़ रुपए भी लग जाते हैं।
मलावली खोहरा निवासी 87 साल के बुजुर्ग लल्लूराम ने कहा कि अब पुराने लोगों की पूछ नहीं है, नयों की है। यह सच है कि पुराने समय में बेइमानी नहीं थी। अब पुरानों की मान्यता नहीं रही। जवान लोग अपनी मर्जी करने लग गए हैं। पहले की बात छोड़ो। अब तो बेटा बाप की भी नहीं मानता है। चुनाव में पैसे की बर्बादी जमकर होती है। पूरी नौकरी व खेती का पैसा चुनाव में लगा देते हैं। कोई समझने वाला नहीं है। चुनाव में दंगा तो नहीं है लेकिन, अब पैसे के बल पर चुनाव होने लग गया। एक-एक की वोट मशक्कत होती रहती है।
युवाओं ने कहा यह सही है कि अब युवाओं का चुनाव रह गया है। युवा पढ़े लिखे हैं। नए दौर की राजनीति को समझते भी हैं। जनप्रतिनिधि के सामने विकास कराना बड़ी चुनौती होता है। इसी कारण नए चेहरे चुनावों में अधिक नजर आते हैं।
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