एडवोकेट अशोक कुमार शर्मा ने पक्ष रखते हुए कहा कि मुख्य रूप से पीडि़ता के साथ सात अगस्त 2017 को सायं करीब साढ़े सात बजे यौन शोषण किए जने का आरोप बिलासपुर थाना में 11 सितम्बर 2017 को दर्ज कराया। इसमें हुई देरी के बारे में विशेष कारण अपनी रिपोर्ट में अंकित नहीं करना बतलाया।
वहीं बिलासपुर पुलिस पर ही सवालिया निशान लगाया कि पुलिस को प्राथमिकी दर्ज किए किए जाने के बाद तुरंत अलवर पुलिस को उक्त प्राथमिकी को भेजना चाहिए। लेकिन पुलिस ने प्राथमिकी को अलवर नहीं भेज कर पीडि़ता के बयान के अलावा उसके माता पिता के बयान भी कराए। पीडि़ता का मेडिकल भी वहीं कराया। प्राथमिकी को 20 सितम्बर 2017 को अलवर पुलिस को भेजा। अरावली पुलिस की ओर से प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद भी पुलिस ने 24 घण्टे के अन्दर न्यायालय के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया। जबकि प्राथमिकी दर्ज होने के 24 घण्टे के अन्दर अदालत को भेजना चाहिए था। पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को भी पत्रावली पर नहीं लिया और अनुसंधान में अनेक कमियां होना जाहिर करते हुए मंगलवार को अपना पक्ष रखा। इस प्रकरण में बुधवार को भी बहस होगी।