आधे से ज्यादा बाघों के नहीं रेडियो कॉलर सरिस्का में जिन बाघ-बाघिनों के रेडियो कॉलर लगे हैं, उनकी लोकेशन सिग्नल से करना आसान है, लेकिन जिन टाइगर के रेडियो कॉलर नहीं हैं, उनकी लोकेशन का पता लगाना आसान नहीं होता। कारण है कि बारिश से जंगल में घास बड़ी होने से पगमार्क ढूंढ पाना संभव नहीं होता। वहीं भैंस व अन्य जानवरों की आवाजाही से टाइगर व भैंसों के पगमार्क में अंतर कर पाना भी आसान नहीं होता। सरिस्का में एक बाघिन को छोड़ शेष के रेडियो कॉलर नहीं है, वहीं कुछ बाघों के भी रेडियो कॉलर नहीं है। इस कारण कैमरे ही इन बाघ-बाघिनों के सुरक्षित होने की जानकारी देने का एकमात्र उपाय है।
शावकों को भी कैमरे से कर रहे ट्रैस सरिस्का में मौजूद दो शावकों को भी कैमरों में देखकर ही ट्रैस किया जा रहा है। शावक अभी छोटे होने के कारण बाघिन के साथ हैं। वहीं बाघिन की टैरिटरी भी काफी छोटी होने के कारण उनका पता लगाना आसान नहीं है। एेसे में बाघिन की टैरिटरी में लगे कैमरों में शावकों की फोटो देख उनकी सलामती का अनुमान लगाया जा रहा है।
बारिश के दौरान पगमार्क मिलना मुश्किल बारिश के दौरान जंगल में टाइगर के पगमार्क ढूढना आसान नहीं होता। इस कारण सरिस्का में कैमरे लगाए गए हैं। इन कैमरों में बाघों की फोटो देखकर उनके सुरक्षित होने का अनुमान लगाया जाता है।
हेमंत सिंह डीएफओ सरिस्का बाघ परियोजना