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यहां जिन्हें जीवन दाता कहा गया वही चले गये हड़ताल पर

locationअलवरPublished: Dec 17, 2017 11:03:03 am

Submitted by:

Rajiv Goyal

चिकित्सक संघ व सरकार के बीच सुलह नहीं होने का खामियाजां आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। चरमराई चिकित्सा व्यवस्था के बाद वैकल्पिक व्यवस्था के प्रयास शुरू

government hospital doctors go to strike
सरकार की ओर से प्रदेश में रेस्मा लागू करने एवं पुलिस की ओर से शुक्रवार रात को अलवर में दो चिकित्सकों की गिरफ्तार के विरोध में चिकित्सक हड़ताल पर रहेंगे। इस दौरान इमरजेंसी में भी मरीजों का उपचार नहीं हो सकेगा।
इस घटना से डॉक्टर खासे नाराज हुए, डॉक्टर एसोसिएशन की तरफ से घटना की निंदा की गई। इसके बाद शनिवार सुबह अस्पताल खुलने के बाद डॉक्टरों को डॉ. मोहनलाल सिन्धी ने बताया कि उन्हें पुलिस जबरन अपराधियों की तरह उठा गिरफ्तार किया। इस घटना के बाद पीएमओ डाक्टर भगवान सहाय ने बताया कि अस्पताल में डॉक्टर मीटिंग के बहाने चले गए। इसके बाद से वापिस नहीं लौटे हैं। जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के मुख्यालय में अधिकारियों को मामले से अवगत करा दिया गया है।
राजीव गांधी सामान्य चिकित्सालय, महिला अस्पताल और गीतानंद शिशु अस्पताल के अधिकतर डॉक्टर अघोषित रूप से हड़ताल पर चले जाने का नतीजा यह रहा कि अस्पताल खाली हो गए। इससे मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। इलाज के लिए मरीज एक जगह से दूसरी जगह पर भटक रहे थे। मरीजों ने बताया कि हड़ताल के कारण डॉक्टरों से परामर्श नहीं मिल पा रहा है। जबकि ओपीडी पर ताला लटक गया है। हड़ताल का असर सिर्फ मरीजों पर नहीं बल्कि मॉर्चरी में रखे शवों पर भी दिखाई देने लगा है। चिकित्सकों के अचानक कार्य बहिष्कार के बाद प्रशासन की ओर से मरीजों के उपचार एवं पोस्टमार्टम के प्रबंध अधूरे दिखे।

क्या रहे डॉक्टरों के हालात


सामान्य, जनाना, शिशु अस्पताल, सैटेलाइट अस्पताल व सिटी डिस्पेंसरी में कुल मिलाकर 95 डॉक्टर कार्यरत हैं। इनमें से सामान्य अस्पताल में मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. जेएस शर्मा, शिशु अस्पताल में लव कुंदनानी व बहरोड़ से सामान्य अस्पताल में लगाए गए चर्म रोग विशेषज्ञ डयूटी पर रहे। इनके अलावा एक एआरटी सेंटर व एक डॉक्टर एनसीडी क्लिनीक के डॉ. राजेन्द्र मलिक ड्यूटी पर रहे। उधर सैटेलाइट अस्पताल काला कुआं, बहरोड़ सीएचसी, नीमराणा, शाहजहांपुर सीएचसी सहित जिले के कई अस्पतालों में डॉक्टर पहुंचे थे। सामान्य दिनों की तरफ अस्पतालों में कामकाज भी हुआ। जबकि कुछ जगह पर डॉक्टरों के दोपहर बाद कार्य बहिष्कार पर जाने की सूचना मिली। इन सब के बीच मरीज परेशान हुआ।
पोस्टमार्टम के लिए आई दिक्कत


शुक्रवार रात सड़क हादसे में सरफराज निवासी नौगांवा की मौत हो गई थी। सरफराज मदरसा में अध्यापक था। उसके बेटा भी बीमार है व निजी अस्पताल में भर्ती हैं। उसका शव सामान्य अस्पताल की मोर्चरी में रखा था। पोस्टमार्टम करने के लिए अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं था। इस पर उसके परिजन व समाज के कुछ लोगों ने अस्पताल पहुंच कर विरोध जताया। इसके कई घंटों बाद बहरोड़ से लगाए गए चर्म रोग विशेषज्ञ ने शव का पोस्टमार्टम किया।
पुलिस ने जुटाएं डॉक्टर्स के रिकॉर्ड


पुलिस व सीआईसी की तरफ से डॉक्टरों के रिकॉर्ड जुटाए गए। जैसे ही डॉक्टरों के कार्य बहिष्कार की सूचना मिली। उसके तुरंत बाद डॉक्टरों की तलाश शुरू हो गई। उनके घर व अस्पताल सहित अन्य जगह पर पुलिस की तरफ से छापे मारे गए। लेकिन कोई डॉक्टर नहीं मिला। सभी के फोन बंद हो गए।

निजी अस्पतालों को दिए इलाज के निर्देश


कार्य बहिष्कार को देखते हुए जिला प्रशासन की तरफ से शहर के 10 अस्पतालों को इलाज के निर्देश दिए। सरकारी अस्पताल की पर्ची पर इन अस्पतालों में मरीज सुबह 9 बजे से दोपहर तीन बजे तक इलाज करा सकते हैं। जबकि मरीजों को दवा सरकारी अस्पताल से मिलेगी। इसमें जनरल मेडिसन के लिए न्यू डायमण्ड अस्पताल, माधुरी अस्पताल, शिशु रोग के लिए अलवर नर्सिंग होम, शिशु व स्त्री रोग के लिए हरीश अस्पताल, सिंघल अस्पताल, जनरल सर्जरी के लिए विजय अस्पताल, हड्डी रोग के लिए विमल अस्पताल, जनरल लैप्रोस्कॉपिक सर्जरी के लिए अनिल नर्सिंग होम, दंत रोग श्री श्याम सेवार्थ डेंटल व आंखों के लिए डॉ. श्रॉफ आई अस्पताल शामिल है।

मरीजों को नहीं मिला उपचार


अलवर के जनाना अस्पताल में इलाज के लिए एक प्रसूता आधे घंटें तक एम्बुलेंस,तो कुछ देर स्टेै्रचर पर पड़ी रही। दूसरी तरफ सामान्य अस्पताल में एक घायल गाड़ी में इलाज का इंतजार करता रहा। सामान्य,जनाना व शिशु अस्पताल सहित जिलेभर के सरकारी अस्पतालों में इसी तरह क हालात दिनभर बने रहे। गंभीर मरीजों को अस्पताल में इलाज नहीं मिला। इलाज के लिए दिनभर मरीज धक्के खाते रहे। 108 एम्बूलेंस चंादोली के पास गांव से राजबाई नाम की एक प्रसूता को लेकर जनाना अस्पताल में पहुंची। उसको प्रसव पीड़ा हो रही थी। लेकिन जनाना अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं होने के चलते करीब आधे घंटे तक प्रसूता एम्बूलेंस में ही पड़ी रही। कुछ देर बाद उसे बाहर निकाल गया व स्टै्रचर पर लेटाया गया। लेकिन उसके बाद भी इलाज नहीं मिला।
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