संत कवियों का मानना है कि श्री कृष्ण ? के समय होली पर फगुआ प्रसादी बनती थी। तो यहां भी वही फगुआ प्रसादी बनती है। रात को धमाल के बाद गर्मागर्म प्रसाद लेने के लिए कई लोग दूर-दूर से खिंचे आते हैं। वहीं रंग होली तो यहां खास होनी ही है। इस दिन सुबह से ही सब एक साथ गाते-बजाजे, ढप की ताल पर नाचते हुए रंगों में घुलमिल जाते हैं। शाम को फिर धमाल के बाद पल्लव। यहां समाज के हजारों लोग मिलकर होली समारोह का समापन करते हैं। पल्लव में सब एक जाजम पर बैठकर भगवान द्वारकाधीश से सुख, समृद्धि और शांति के लिए झोली फैलाते हैं।
पाकिस्तान में भी वही रंग होली को लेकर पाकिस्ताने के सिंध प्रांत के मिठी कस्बे में भी कुछ इसी तरह का जोश रहता है। वहां हिंदू समुदाय के लोग होली बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं। वहां भी होली का त्योहार 8 दिन पूर्व ही प्रारंभ हो जाता है। लोगों की टोलिया ढ़प लेकर राधा-कृष्ण के भजन गाते हुए अपनी ही धुन में रहते हैं। इसके साथ ही वहां धुलण्डी के दिन कपड़े फाडऩे का रिवाज है। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि पाकिस्तान में भी हिंदू अपने रंगोत्सव को जीवित रखे हुए हैं।