ये निकलें जंगल से बाहर तो बाघों को मिल जाएगा नया घर
अलवरPublished: Feb 24, 2020 02:55:41 am
अलवर. सरिस्का बाघ परियोजना को लंबे समय से नए बाघ का इंतजार है, जबकि रणथंभौर में बाघों का कुनबा बड़ा होने के कारण जगह कम पडऩे लगी है। ऐसे में रणथंभौर की समस्या का निराकरण सरिस्का में बाघ भेजकर आसानी से किया जा सकता है, लेकिन गांवों के विस्थापन की धीमी प्रक्रिया ने सरिस्का में नए बाघ लाने की राह में रोड़ा अटका दिया है।
ये निकलें जंगल से बाहर तो बाघों को मिल जाएगा नया घर
अभी हालत है कि खुद सरिस्का के बाघ इन दिनों जंगल से बाहर निकल रहे हैं। सरिस्का बाघ परियोजना में बसे गांवों की विस्थापन प्रक्रिया में तेजी आए तो रणथंभौर पार्क से बाघों के बाहर निकलने और बाघों की अकारण मौत की समस्या से छुटकारा मिल सकता है। क्षेत्रफल में रणथंभौर से दोगुने सरिस्का में जंगल और पहाड़ कम नहीं है, लेकिन ज्यादातर क्षेत्र में गांवों के बसे होने से बाघों के लिए जगह कम पडऩे लगी है। वर्तमान में सरिस्का में 16 बाघ-बाघिन हैं, जबकि पर्याप्त जगह करीब 15 बाघों के लिए बची है। यही कारण है कि राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण (एनटीसीए) भी गांवों के विस्थापन से पूर्व नए बाघों के लाने से कतराता है।
गांवों के विस्थापन के बिना सरिस्का में नया बाघ लाना मुसीबत बन सकता है। सरिस्का में अभी 16 बाघ व बाघिन हैं, वहीं एक और बाघ की शिफ्टिंग का इंतजार है। बाघ एसटी-16 की मौत के बाद सरिस्का प्रशासन की ओर से नए बाघ लाने का प्रस्ताव पूर्व में राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण (एनटीसीए) को भेजा गया था। हालांकि एनटीसीए ने बाघ शिफ्टिंग को मना तो नहीं किया, लेकिन पहले सरिस्का में बसे गांवों के विस्थापन को जरूरी बताया है। सरिस्का में वर्तमान में 6 नर बाघ हैं। वहीं 10 बाघिन हैं। इनमें तीन नर व दो मादा बाघों की उम्र करीब 2 से सवा दो साल है। पांचों नए बाघ-बाघिन कुछ समय पहले ही अपनी मां (बाघिनों) से अलग हुए हैं और इन दिनों अपनी टैरिटरी की तलाश में हैं। इस कारण नए बाघ सुरक्षित टैरिटरी की तलाश में सरिस्का से बाहर निकल रहे हैं। सरिस्का में 24 से ज्यादा गांव बसे हैं। वहीं कोर एरिया में 9 में से 6 गांवों का विस्थापन होना शेष है। गांवों का विस्थापन नहीं हो पाने से नए बाघों को टैरिटरी के लिए उपयुक्त स्थान नहीं मिल पा रहा है। इस कारण नए बाघ सरिस्का से बाहर निकलने लगे हैं। रणथंभौर को पिछले एक दशक में 58 बाघ-बाघिनों का नुकसान झेलना पड़ा है। वहां वर्ष 2010 से अब तक 26 बाघों की मौत हो चुकी है और 32 बाघ लापता हो चुके हैं। रणथंभौर की यह समस्या वहां सीमित क्षेत्रफल व बाघों का बढ़ता कुनबा है।