विजय नगर में सात कुओं के नाम से करीब 107 बीघा जमीन सन 1984 से अवाप्ति के तहत उलझी हुई है जबकि इससमय मौजूदा किसान नियमानुसार 15 प्रतिशत विकसित जमीन लेने को राजी हो गए। इसके बावजूद सरकार के स्तर पर निर्णय नहीं किया जा रहा है। जनप्रतिनिधियों ने भी इस जमीन को सुलझाने की बजाय उलझाने की अधिक कोशिश की है। यह बात अब काश्तकारों को समझ में आ चुकी है। इसके बाद किसान खुद यूआईटी को 15 प्रतिशत विकसित जमीन लेने की सहमति दे चुके हैं। फिर भी कोई निर्णय जानबूझकर नहीं कर रहे हैं। सबसे अधिक मार तो किसान पर पड़ रही है। जिसकी जमीन होने के बावजूद वह न उस पर खेती कर पा रहे न बेचान कर पा रहे।
अब यहां बजरी खरीद-फरोख्त विजय नगर में यह जमीन खाली पड़ी है। जिस पर कई दर्जन लोग बजरी खरीद-बेचान का काम कर रहे हैं। जबकि प्रदेश भर में बजरी खनन पर भी रोक लगी है। इसके बावजूद यहां पहले की तरह बजरी आ रही है। रातोंरात बजरी पहुंचती है। फिर यहां से ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के जरिए शहर में महंगे दामों पर सप्लाई हो रही है।
जनता पर मार, किसान लाचार एक तरह से अवैध खनन करने वाले सरकारी जमीन से मोटा पैसा कमा रहे हें। जनता को महंगे दामों में उनसे बजरी लेनी पड़ रही है। किसान को जमीन का हक नहीं मिल रहा है और आम आदमी की मकान की आस में उम्र पूरी होती जा रही है।
सैकड़ों को मिल सकता है घर इस जमीन पर सैकड़ों लोगों को घर मिल सकता है। अब उलझन सिर्फ इतनी रह गई है कि सरकार को किसानों केा जमीन देने का निर्णय लेना है। कुछेक लोग जरूर अतिक्रमण करके थोड़ा बहुत फायदा उठा रहे हैं।