भारत की बहादुर सेना की 10वीं पैरा बटालियन ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत के छाछरो कस्बे पर विजय पताका फहराई थी। खास बात ये कि राजस्थान की मिट्टी के लाल पूर्व जयपुर रियासत के दिवंगत नरेश व तत्कालीन लेफ्टिनेट कर्नल महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर भवानी सिंह के नेतृत्व में यह ऐतिहासिक विजय प्राप्त की गई थी। छह दिसम्बर 1971 की आधी रात के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तान के इस क्षेत्र पर कब्जा किया था। लेकिन शिमला समझौते में वार्ता की मेज पर जीता हुआ क्षेत्र फिर से पाकिस्तान की झोली में डाल दिया गया।
जयपुर के लिए गर्व के पल छाछरो विजय के बाद ब्रिगेडियर भवानी सिंह के शौर्य के चर्चे पूरे देश में होने लगे थे। दशकों तक जयपुर के सिटी पैलेस में 7 दिसम्बर को छाछरो दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। इस जीत के बाद जयपुर आने पर शहर में भव्य स्वागत भी हुआ था। उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
छह माह तक राज, जोधपुर में ऑक्यूफाइ टेरिटरी ऑफिस भारत की छाछरो विजय के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कैलाशदान उज्जवल को कमिश्रर ऑक्यूफाई टेरिटरी बनाया गया था। वे सर्दन कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल बेउर और राजस्थान सरकार के मध्य समन्वय का काम देखते थे। जोधपुर निवासी उनके सुपुत्र आरएएस रहे महिपाल सिंह उज्जवल का कहना है कि तब छह माह तक पिताजी का निरंतर छाछरो आना-जाना था। उनका दफ्तर जोधपुर था। वह विजय भारत के लिए गौरवशाली थी।
छाछरो की अहमियत हिंदूसिंह सोढा छाछरो के साक्षी रहे सीमांत लोक संगठन के संस्थापक हिंदूसिंह सोढा का कहना है कि छाछरो की ढाट, थारपारकर और सिंध में अहमियत रही है। आज भी छाछरो में लाधूराम महाराज का डेरा है। इस डेरे के गद्दीदार भारत में हैं। वर्तमान गद्दीदार अलवर के खैरथल निवासी जेठानंद कल्ला का कहना है कि 71 में विजय के बाद आशा जगी थी कि सब अपने गांव वापस जा सकते हैं। पर राजनीति को कुछ और मंजूर था। वहीं इस विजय के करीब 50 दिन बाद 26 जनवरी 1972 को छाछरो में गणतंत्र दिवस समारोह मनाया गया। समारोह में राष्ट्रगान गाया गया।