तत्कालीन एसडीएम आशुतोष एटीपेडणेकर ने खाली पडी जमीन के उपयोग के लिए क्षेत्र में हस्त शिल्पकारों के लिए भूमि भी आंवटित करवाई ताकि यहां हस्तकला की छटा बिखर सकें। सुविधाओं के अभाव में उन्होंने भी वहां रूचि नहीं दिखाई। पास के मालूताना गांव में टाइल फैक्ट्री जरूर लगी, लेकिन उसमें भी रोजगार पाने वाले लोगों को संख्या कम रही। आज तक यह औद्योगिक क्षेत्र उद्योग विहिनपड़ा है। कुछ छुटपुट फैक्ट्री जरूर लगी है।
पानी- बिजली पर्याप्त नहीं उद्योगों के नहीं लग पाने का एक कारण यह भी बताया जाता है कि क्षेत्र में पानी की कमी है, बिजली पर्याप्त नहीं मिलना भी एक बड़ा कारण रहा है। साथ ही अन्य सुविधाएं, संसाधन भी विकसित नहीं होने से बड़े उद्योगपतियों को इकाइयां लगाने के लिए कोई प्रयास भी नहीं किए गए।
नेताओं की घोषणाएं कागजों में ही यहां पर न तो कोई औद्योगिक क्षेत्र विकसित हुआ है, न ही यहां की फसलों पर आधारित किसी प्रकार का कोई प्रोजेक्ट या प्रसंस्करण इकाई की शुरुआत हुई है। रोजगार के अवसर के लिए दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने उद्योगों की स्थापना और औद्योगिक हब बनाने तक की घोषणा की है, जो केवल कागजों तक सीमित रही है।
जनता की जुबानी पार्षद थानागाजी कपिल कुमार मीना का कहना है कि रीको औद्योगिक क्षेत्र को विकसित होना चाहिए था, जो नहीं हुआ, विकास होता तो स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता। अधिवक्ता मनीष कुमार जैन का कहना है कि स्थानीय लोगों को उद्योगों के प्रति प्रोत्साहित कर प्रशिक्षित कर, वित्तीय सहायता दी जाती तो निश्चित ही उद्योग लगते और स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलता। समाजसेवी मुकेश कुमार सैनी का कहना है कि मजदूर वर्ग के साथ ही पढ़े लिखे युवा वर्ग को भी रोजगार की तलाश में भटकना पड़ता है। इसके लिए आज तक कोई प्रयास नहीं किए गए है। इन प्रयासों के अभाव में क्षेत्र में बेरोजगारी बड़ी है।