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जन्माष्टमी विशेष: आठवीं शताब्दी में मथुरा जनपद का हिस्सा था राजस्थान का यह जिला, श्री कृष्ण की होती है विशेष पूजा

locationअलवरPublished: Aug 12, 2020 03:40:21 pm

Submitted by:

Lubhavan

श्री कृष्णा और बृज क्षेत्र से जुड़ाव होने के कारण जिले में मथुरा की तर्ज पर मंदिरों का निर्माण भी किया गया है

Janmashtami 2020: Alwar Area Was part Of Mathura In Old Era

जन्माष्टमी विशेष: आठवीं शताब्दी में मथुरा जनपद का हिस्सा था राजस्थान का यह जिला, श्री कृष्ण की होती है विशेष पूजा

अलवर. कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर कई दिन पहले ही कृष्ण मंदिरों में रौनक नजर आने लगती है, भक्तों में उत्साह छा जाता है। आखिर ऐसा हो भी क्यों ना, कृष्ण की नगरी मथुरा का अलवर से पुराना नाता रहा है।
बृज के नजदीक होने के कारण यहां कृष्ण की पूजा अर्चना भी वर्षों से होती आई है। इसीलिए अलवर शहर में राज काल के दौरान से ही भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपों के मंदिरों की स्थापना की गई। अलवर जिला मथुरा के नजदीक होने के कारण वहां होने वाले उत्सवों का यहां प्रभाव ज्यादा नजर आता है।
ऐतिहासिक रूप से अलवर आठवीं शताब्दी में मथुरा जनपद का ही हिस्सा था। यह जिला शुरू से ही धार्मिक दृष्टि से कृष्ण से जुड़ा हुआ है।बृज क्षेत्र की चौरासी कोस की यात्रा और गोवर्धन की यात्रा यहां के लोग निरंतर करते रहते हैं। इतना ही नहीं गोवर्धन पूजा के दौरान भी मेवात के लोग गोवर्धन की परिक्रमा के लिए जाते हैं।
साहित्यिक व सांस्कृतिक रूप से भी बृज का प्रभाव अलवर में नजर आता है। यहां हिंदी खड़ी बोली है जिसमें मेवाती और बृज का प्रभाव दिखाई देता है।

राज काल से ही जन्माष्टमी के आयोजन यहां बड़े स्तर पर होते आए हैं। कृष्ण के बाल स्वरूप से लेकर उनके अन्य स्वरूपों के दर्शन भी यहां के मंदिरों में होते हैं। इतिहासकार हरिशंकर गोयल बताते हैं कि राजकाल के दौरान जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन होते हैं । इस दिन अलवर शहर के लोग व्रत रखते हैं और रात को कृष्ण जन्माष्टमी के बाद व्रत को खोला जाता है।
कृष्ण मंदिरों में सजती थी झांकियां, भक्ति संगीत का होता आयोजन

अलवर में स्थित विनय विलास पैलेस और विजय मंदिर में भी 1918 से 1956 तक जन्माष्टमी का आयोजन धूमधाम से मनाया जाता था। इसके अलावा अलवर शहर के हजारी का मोहल्ला स्थित मथुराधीश मंदिर में भी यह आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता था। अलवर के महल चौक परिसर में भगवान कृष्ण के अलग-अलग मंदिर है जो मथुरा की तर्ज पर बनाए गए हैं। जन्माष्टमी पर यहां विशेष झांकियां सजती थी। पोशाक भी मथुरा-वृंदावन से ही आती थी। अलवर शहर के बजाजा बाजार स्थित महावर समाज के सेठ सेठानी मंदिर में भी यह आयोजन किया जाता था। जन्माष्टमी के दिन भक्ति संगीत का कार्यक्रम विशेष रूप से होता था जो कि श्रंगार प्रिय ना होकर राधा कृष्ण की भक्ति से जुड़ा हुआ होता था। जन्माष्टमी का व्रत करने वाले लोग अलवर के समीप स्थित गरबा जी के झरने, भूरा सिद्ध के झरने और भर्तृहरि के झरने में नहाते भी थे।
अली बख्श ने लिखी थी कृष्ण भक्ति की रचनाएं

राज काल के दौरान मुंडावर के रहने वाले कवि अलीबखस ने कृष्ण की स्तुति कर के अपने आप को रंगमंच पर स्थापित किया। कृष्ण भक्ति पर आधारित अली बख्श के ख्याल और उनका मंचन आज भी भुलाए नहीं भूलता है। अलवर जिले में कृष्ण की भक्ति और बृज की संस्कृति का मेलजोल दिखाई देता है। कृष्ण के जीवन पर आधारित रास लीलाएं यहां राज काल से ही होती आ रही है।
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