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जनमाष्टमी : मत्स्यांचल का भगवान कृष्ण से रहा है पुराना नाता, आप भी जानिए

locationअलवरPublished: Sep 03, 2018 02:57:17 pm

Submitted by:

Hiren Joshi

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Janmashtami : Alwar Has Old Relation With Lord Krishna

जनमाष्टमी : मत्स्यांचल का भगवान कृष्ण से रहा है पुराना नाता, आप भी जानिए

अलवर. मत्स्यांचल का कृष्ण से पुराना नाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण रासलीला और क्रीड़ा करते ब्रज के कामां तक आए। यही कारण है कि ब्रज मण्डल की 84 कोस की परिक्रमा में कामां भी शामिल है। मत्स्यांचल से जुड़े लोगों के गोत्र भगवान श्रीकृष्ण के वंश से मिलते जुलते रहे हैं। इतना ही बाला किला का निर्माण कराने वाले अलावल खां के पिता का भी भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ाव रहा है।
अलवर के इतिहास के जानकार एडवोकेट हरिशंकर गोयल बताते हैं कि मत्स्यांचल में कृष्ण भक्ति की परम्परा कोई नई बात नहीं है, बल्कि सदियों पूर्व से ही मत्स्यांचल में कृष्ण भक्ति की परम्परा रही है। ब्रज मण्डल का मत्स्यांचल से जुडाव कृष्ण भक्ति की परम्परा द्योतक है। वे कहते हैं कि मत्स्यांचल के सिंगलवाटी का यह गीत रातूं रंभाई पिसाई मर गई गाय, तूं सिदोसी ले जा जमुना में, सिदोसी ले जा गायन नै मै भी आ रही हूं जमुना तट पर रोटी लेर, फोड दी चप्पी दहीयन की भरी, अब तौऊ ना छोडूं गायन का बिगड़ा ग्वाला। तौहे मैं तोडूंगी बांसुरी मेरी सोत, चिपटेगी या का रोडन पै। बांसुरी मौ सूं अच्छी, हर दम राखे अपने हौठन के लगाय। मत्स्यांचल का कृष्ण भक्ति को दर्शाता है। तभी तो पुराने समय में मत्स्यांचल के लोग इस गीत को गुनगनाते थे।
मत्स्यांचल एवं कृष्ण भक्ति का सम्बन्ध यहीं नहीं रुका, बल्कि स्टेट समय से लेकर अब तक यह परम्परा जारी है। भले ही कृष्ण भक्ति के स्वरूप में बदलाव आ गया हो, लेकिन अलवर के मत्स्यांचल में कृष्ण की भक्ति की परम्परा आज भी कायम है। अलवर पूर्व राजघराने के राजा- महाराजा ने कृष्ण भक्ति की परम्परा का न केवल निर्वहन किया, बल्कि उसे आगे बढ़ाया। उस दौरान कृष्ण जन्माष्टमी पर भजन संध्या, नृत्य संगीत व कृष्ण सज्जा जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता था। लोग कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत रखते थे तथा रात को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के बाद विधि विधान से व्रत खोलते थे।
स्वयं पूर्व महाराज भी राजघराने के मंदिरों में भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना करते थे तथा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का आयोजन करते थे। मत्स्यांचल में सदियों से चली आ रही कृष्ण भक्ति की परम्परा वर्तमान में भी कायम है। अब भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव पर पूरे जिले में मंदिरों में भव्य सजावट होती है तथा भजन, कीर्तन, नृत्य संगीत के कार्यक्रम होते हैं। घरों में भी लोग व्रत रखकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं तथा रात को कृष्ण जन्मोत्सव मनाकर व्रत खोलते हैं। पूरे मत्स्यांचल में भी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की धूम रहती है।
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