यूआईटी, सिंचाई विभाग, नगर नियोजक सहित कई विभागों की संयुक्त टीमों ने एक साथ मिल कर सर्वे किया है। उल्लेखनीय है कि अब्दुल रहमान बनाम सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट व सख्त आदेश हैं कि नदी, नाले, बांध, तालाब व बहाव क्षेत्रों में किसी तरह का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। उनको आजादी के समय के मूल स्वरूप में लेकर आएं।
बची केवल 93 हैक्टेयर मिली जानकारी के अनुसार नगर नियोजन के मास्टर प्लान में पहले प्रेम रत्नाकर बांध 130 हैक्टेयर जमीन पर दिखाया गया है। अब सर्वे किया तो बांध करीब 93 हैक्टेयर ही बचा है। जिसमें भी काफी जमीन पर निर्माण है। नक्शा आधारित खसरा रिपोर्ट तैयार हो चुकी है। जिसमें यह स्पष्ट है कि किस-किस खसरे में निर्माण हो गया है। खसरे में जमीन पर अवैध निर्माण राजस्व या यूआईटी के जरिए चिह्नित किए जाने की बात कही जा रही है।
इन खसरों पर अतिक्रमण मिली जानकारी के अनुसार सर्वे रिपोर्ट में कब्जे वाली भूमि में खसरा नंबर 578, 713, 1118, 583, 555, 489,502,309, 352, 372, 489, 1718 सहित ऐसे 60 से अधिक खसरे शामिल है। इन खसरों में निर्माण हो चुका है। सिंचाई विभाग ने जो डूब क्षेत्र तय किया है उसमें बड़ा निर्माण है। बांध में अतिक्रमण कर चाहे विभाग की कार्रवाई की हो या फिर कभी मूसलाधार बारिश के बाद पानी में डूबने का खतरा हो। यदि आपका मकान भी भराव क्षेत्र या आसपास है तो पता जरूर कर लें। ताकि भविष्य में किसी तरह की दिक्कत नहीं हो।
सैकड़ों परिवारों की मुश्किल बढ़ी इस सर्वे से सैकड़ों परिवारों की मुश्किल बढ़ गई है। हालांकि अन्य लोग सावचेत हो सकेंगे। किसी भी भूमाफिया के चक्कर में आकर बांध भराव क्षेत्र की जमीन पर भूखण्ड नहीं खरीदें। अन्यथा कभी मूसलाधार बारिश हुई तो जान-माल का बड़ा नुकसान हो सकता है। सर्वे रिपोर्ट का आमजन को भी इन्तजार है। काफी परिवार रिपोर्ट आने के बाद ही मकान बनाने का कार्य शुरू करना चाह रहे हैं।
पत्रिका चेताता रहा हर बार बांध की जमीन पर अफसरों की मिली भगत से लगातार कब्जे होते रहे लेकिन उसे रोका नहीं गया।अब दिक्कत खरीददारों के सामने है। राजस्थान पत्रिका ने हर बार इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाता रहा। अब सर्वे आने के बाद पत्रिका की खबर पर मुहर लग गई है कि अफसरों की मिली भगत से बांध के बड़े हिस्से पर भू-माफिया कब्जा कर चुके है।
आज की स्थिति के आधार डूब क्षेत्र तय हमने डूब क्षेत्र नक्शे पर चिह्नित करके यूआईटी को भेज दिया है। अब यूआईटी के स्तर पर आगे की प्रक्रिया बढ़ेगी। जिसके जरिए यह पता लग सकेगा कि बांध की कितनी जमीन पर निर्माण हो चुका है।
राजेश वर्मा, अधीक्षण अभियंता, सिंचाई विभाग, अलवर