इस कारण है लोगों की इन नामों में दिलचस्पी विधानसभा चुनाव के लिए दोनों ही दलों की ओर से टिकट वितरण के लिए गाइड लाइन तैयार होने की चर्चा रही है। इनमें भाजपा की ओर से पिछले दिनों जिलाध्यक्ष के चुनाव लडऩे की मनाही कर दी गई। कांग्रेस में स्पष्ट तौर पर तो एेसी गाइड लाइन नहीं बनी लेकिन यहां भी जिलाध्यक्ष के चुनाव लडऩे को लेकर चर्चा जरूर रही। गाइड लाइन की चर्चा के बावजूद ज्यादातर लोगों को उम्मीद है कि इस बार दोनों ही प्रमुख दलों के जिलाध्यक्ष अलग-अलग क्षेत्रों से चुनाव मैदान में दिखाई पड़ सकते हैं। इनमें कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने अलवर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से टिकट की मांग की है। इस कारण उनके वहां से चुनाव लडऩे की पूरी तैयारी है। लेकिन लोगों की दिलचस्पी भाजपा जिलाध्यक्ष के चुनाव लडऩे को लेकर है। इसका कारण भाजपा की ओर से जिलाध्यक्ष को चुनाव नहीं लड़ाने के निर्देश है, लेकिन पिछले दिनों जयपुर में हुई पार्टी की रायशुमारी में शर्मा का नाम प्रमुखता से उभरने एवं अलवर शहर के प्रमुख कार्यकर्ताओं की ओर से सोशल इंजीनियरिंग का पैमाना बदलकर पर विचार की जरूरत ने इस चर्चा को बल दिया है।
भाजपा में पिछली बार थी गाइड लाइन भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि गत विधानसभा चुनाव में भी पार्टी जिलाध्यक्षों के चुनाव लडऩे पर पाबंदी लगाई गई थी, लेकिन आखिरी समय में जिताऊ प्रत्याशी को गाइड लाइन मान प्रदेश में चार जिलों में जिलाध्यक्षों को विधानसभा चुनाव लड़वाया गया। इनमें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के गृह निर्वाचन जिला झालावाड़ से भी जिलाध्यक्ष को चुनाव लड़वाया गया और जीतने पर सरकार में संसदीय सचिव बनाया गया। कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि इस बार विधानसभा चुनाव में कांटे का संघर्ष होने और एक-एक सीट महत्वपूर्ण होने के कारण गाइड लाइन फिर से बदलना तय है। इस कारण भाजपा जिलाध्यक्ष संजय शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है।
कार्यकर्ताओं में उत्साह बढऩे के आसार जिलाध्यक्षों के चुनाव लडऩे से दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढऩे के आसार हैं। पार्टी कप्तान की चुनावी दंगल में मौजूदगी जिले की अन्य सीटों पर भी कार्यकर्ताओं के लिए जोश भरने वाली साबित हो सकती है। इससे जिले में चुनावी मुकाबले में रोचकता बढ़ेगी।