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स्वामी विवेकानंद जयंती विशेष: जब स्वामी विवेकानंद ने राजा की आंखें खोल दी, जानिए पूरा किस्सा

locationअलवरPublished: Jan 12, 2018 02:22:42 pm

Submitted by:

Hiren Joshi

स्वामी विवेकानंद अपने विचारों के कारण जाने जाते हैं। अपने शुद्ध विचारों द्धारा स्वामी विवेकानंद महाराज ने एक राजा की आंखें खोल दी थी।

lesson of swami vivekanand to the king
स्वामी विवेकानंद ने अपना दायित्व और जीवन का उद्देश्य सफल करने के लिए भारत की परिक्रमा शुरू की। 1891 के फरवरी महीने के पहले सप्ताह में दिल्ली होते हुए स्वामी विवेकानंद वीर भूमि तत्कालीन राजपूताना और अब राजस्थान में पधारे। वे अलवर शहर के रेलवे स्टेशन पर पहुंचे।। तबके राजपथ पर चलते हुए राज चिकित्सालय के प्रमुुख चिकित्सक गुरुचरण लश्कर को देख स्वामीजी ने पूछा? इधर साधु संन्यासियों के ठहरने योग्य स्थान कोई है क्या? कमनीय बदन त्यागीश्वर संन्यासी के मुख से मातृभाषा सुनकर वे अत्यंत आनंदित हुए और ससम्मान बोले, पधारिये। आज्ञा कीजिए। क्या सेवा करूं? फिर स्वामीजी को साथ में लेकर बाजार में एक दो मंजिला मकान में लेकर गए और उनकी अनुमति के बाद वहां ठहराया।
डॉ. गुरुचरण बाबू स्वामीजी को अपने एक मोलवी मित्र के पास ले जाकर बोले, मोलवी साहब एक बंगाली दरवेश यहां आए हैं। आप उनके साथ बातचीत कीजिए, मैं भी अपना काम निपटाकर जल्दी ही आपके पास आ जाउंगा। स्थानीय उच्च अंग्रेजी स्कूल का उर्दू फारसी शिक्षक मोलवी साहब, स्वामीजी से मिलने नंगे पैर पहुंचा और उन्हेंं सलाम किया। स्वामीजी ने बातचीत करते हुए कहा, कुरान के संबंध में यह एक विशिष्ट आश्चर्य की बात है कि 1400 साल पहले जो उसका स्वरूप था आज भी वैसा ही है। उसकी प्राचीनतम शुद्धता सुरक्षित है और किसी को भी उस पर कलम चलाने की हिम्मत नहीं हुई है। स्वामीजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अलवर स्टेट के दीवान मेजर रामचंद्र ने उनसे ठहरने की प्रार्थना की। दीवान ने अलवर के तत्कालीन महाराजा मंगलसिंह को भी उनके दर्शनार्थ बुला लिया। महाराज ने श्रद्धापूर्वक स्वामीजी से प्रश्न किया? आप अंग्रेजी भाषा के प्रकांड विद्वान होते हुए भी भिक्षु जीवन क्यों व्यतीत करते हैं?
स्वामीजी ने जवाब की बजाय उनसे प्रश्न पूछ लिया, राजन आप राज-कार्य त्यागकर अंग्रेजों के साथ समय क्यों व्यतीत करते हैं? जवाब में महाराजा का उत्तर थाा कि, यह मुझे अच्छा लगता है। स्वामीजी ने प्रत्युत्तर दिया मुझे भी यही जीवन अच्छा लगता है। महाराजा मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने फिर सवाल किया कि- यह समझ से परे है कि लोग मिट्टी पत्थर और धातुओं की क्यों और किस प्रकार पूजा करते हैं? स्वामीजी ने तत्काल ही सामने दीवार पर टंगी अलवर महाराज की तस्वीर एक दरबारी से उतरवाई और दीवान को कहा कि इस पर थूकिये। घबराकर दीवानजी ने कहा कि यह क्या कर रहे हैं महाराजा। यह हमारे महाराज की प्रतिमूर्ति है। हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? स्वामीजी दीवान की बात सुनकर बोले, इस तस्वीर में न हाड है न मांस है। यह आकृति न हिलती है न डुलती है, न बोलती है। फिर आप इस पर क्यों नहीं थूकते? क्योंकि ऐसा करने से महाराजा का अपमान होगा। फिर स्वामीजी ने महाराज से कहा भक्त दरबारी आपका जितना सम्मान करते हैं उतना ही छवि को भी सम्मान करते हैं। इस प्रकार देव-देवियों में भगवान के विशेष गुणों की कल्पना कर उनकी पूजी की जाती है न कि मिट्टी पत्थर और धातु की। महाराज ऐसा सुनकर हाथ जोडकऱ बोले- स्वामीजी आपने जिस प्रकार से मूर्तिपूजा की व्यवस्था की है, उस प्रकार मैंने किसी को भी करते नहीं देखा है। मैं यह तत्व नहीं जानता था, आपने मेरी आंखें खोल दी। फलत: उनको जीवन में एक नया रास्ता दिखाया जिससे मन में शांति और आनंद मिलता है।

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