बहरोड़. एनएच आठ पर स्थित फ्लाइओवर की क्षतिग्रस्त रैलिंग।
आधुनिकता का बोलबाला
सरकारी पुस्तकालय की बजाय दे रही निजी को तरजीह
हर जेब में पहुंची लाइब्रेरी
वर्षों पुरानी सार्वजनिक पुस्तकालय के मात्र 40 सदस्य
बहरोड़. शहर के बीच में स्थित सार्वजनिक पुस्तकालय एवं उसमें रखा ज्ञान के खजाने से अब लोगों मोहभंग हो गया। कभी पाठकों से गुलजार रहने वाली सार्वजनिक पुस्तकालय में अब महज तीस पाठक भी नहीं पहुंच पा रहे है। हजारों किताबों का संग्रह समेटे सार्वजनिक लाइब्रेरी की जगह पर अब लोग आधुनिकता से लवरेज निजी लाइब्रेरी को प्राथमिकता दे रहे है। कस्बे में अब जगह जगह निजी लाइब्रेरी खुल गई है। डिजिटल युग में सार्वजनिक लाइब्रेरी का यह हाल है तो दूसरी तरफ निजी लाइब्रेरी का दौर चल पड़ा है। कस्बे में विभिन्न जगहों पर एक दर्जन से अधिक लाइब्रेरी खुल गई है। निजी लाइब्रेरी में बैठने की बढिय़ा व्यवस्था के साथ ही पुस्तक व डिजिटल सामग्री उपलब्ध कराने लगी है। यहां पर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवा दो से तीन हजार रुपए महीने के खर्च कर रहे है लेकिन सार्वजनिक लाइब्रेरी में सालाना डेढ़ सौ रुपए शुल्क लिया जा रहा है। आज के बदलते डिजिटल युग में सरकारी लाइब्रेरी की दशा सुधारने के लिए सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है।
हासिये पर आ गई किताबें
आज के बदलते युग में डिजिटल क्रांति ने किताबों को हासिये पर ला दिया है। विद्यार्थी आज किताबों की जगह पर कम्प्यूटर व मोबाइल पर ई-बुक पढऩा ज्यादा बेहतर समझते है। क्योंकि उन्हें ऑनलाइन किताबे पढऩे के दौरान एक ही प्रश्न के अनेक जवाब मिल जाते है। वहीं प्रतियोगी परीक्षाओं में परीक्षा कम्प्यूटर पर ऑनलाइन होने के कारण कई संस्थान मुफ्त में मोबाइल पर ऑनलाइन तैयारी करवा रही है। आज लोग लाइब्रेरी में जाकर किताब ढूंढने की बात तो दूर जब मोबाइल में ही ऑन नेट किताब मिल रही है तो किताब कौन ले।
इनका कहना है
शहर में दर्जन भर निजी लाइब्रेरी खुल गई है। जिनमे आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में पाठकों का रुझान उस ओर ज्यादा है। वहीं सार्वजनिक लाइब्रेरी में किताबों की संख्या तो 26 हजार से अधिक है लेकिन जगह की कमी के चलते यहां पर कोई पाठक नहीं आना चाहता है।
दिनेश शर्मा, पुस्तकालय अध्यक्ष, गंगा सार्वजनिक पुस्तकालय बहरोड़