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1970-80 के दशक का चुनाव, चुनाव प्रचार के दौरान खाने का टिफिन लेकर निकलते थे नेता, प्रचार के लिए 2-4 पम्फलेट होते थे पर्याप्त

पहले के मुकाबले अब चुनाव पूरी तरह से बदल गया है। पहले २-४ पम्फलेट में पूरा चुनाव प्रचार हो जाता था।

अलवरApr 18, 2019 / 11:19 am

Hiren Joshi

1970-80 के दशक का चुनाव, चुनाव प्रचार के दौरान खाने का टिफिन लेकर निकलते थे नेता, प्रचार के लिए 2-4 पम्फलेट होते थे पर्याप्त

बहरोड़. बात सत्तर से अस्सी के दशक की है। पहले चुनाव में इतना प्रचार और तामझाम नहीं था। आवागमन के साधनों का भी अभाव था। इस कारण हर गांव में प्रत्याशी पहुंच भी नहीं पाते थे। पार्टी के कार्यकर्ता पम्फलेट बांट देते थे।
उसी से लोग प्रत्याशी और पार्टी की घोषणा, वादे और दावे को जान जाते थे। लोगों को जरा भी इस बात की शिकायत नहीं होती थी कि उनके गांव में प्रत्याशी नहीं आए। लोग ब्लैक एंड व्हाइट पम्फलेट और बिल्ले को बड़े जतन से संभाल कर रखते थे। आज तो शहर हो या गांव, हर गली और मोहल्ला-ढाणी, प्रचार के लिए बड़े-बड़े फ्लेक्स, बैनर और बड़े पोस्टरों से अटे हैं।
बुजुर्गों का कहना है कि उस समय आज की तरह बैनर-पोस्टर तो थे नहीं, किसी के घर की दीवार पर अपने पार्टी का चुनाव चिन्ह आपने और झंडा टांगने के लिए हिम्मत जुटाने पड़ती थी। हालांकि ऐसा नहीं था कि लोग विरोध कर देंगे या कोई विवाद हो जाएगा, बल्कि इसलिए कि जब पार्टी के उतने कार्यकर्ता नहीं होने के कारण लोग संकोच करते थे। धीरे-धीरे समय के साथ राजनीति बदलती गई और अब तो प्रिंट मीडिया, आकाशवाणी, दूरदर्शन के साथ सोशल मीडिया ने अपना स्थान बना लिया है।
टिफिन लेकर निकलते

आज के दौर की तरह कार्यकर्ताओं को खुश करने की जरूरत नहीं होती थी। लोगों की पार्टी और प्रत्याशी के प्रति इतनी निष्ठा और समर्पण होती थी कि प्रचार करने जाते थे तो अपने साथ घर से टिफिन लेकर।
मुखिया का समर्थन सर्वोपरि

प्रत्याशी गांव में चुनाव के प्रचार के लिए आने पर गांव का मुखिया ही पूरे गांव में मतों का समर्थन दे देता था। इसके बाद मुखिया के अनुसार ही पूरे गांव के लोग उसी को वोट कर देते थे। प्रत्याशी भी गांव में सिर्फ मुखिया के वोट मांगने आता था।
नेता जीप और कार्यकर्ता साइकिल पर

प्रचार के न तो इतने संचार के माध्यम थे और न ही प्रत्याशी व दल के पास संसाधन। एक जीप होती थी जिसमें प्रत्याशी पूरे क्षेत्र में घूम-घूमकर चुनाव प्रचार करते थे। जिस दिन जिस गांव में पहुंचना हो तो आसपास के कार्यकर्ता पहले ही इक_े रहते थे। प्रत्याशी जीप में आगे आगे चलते थे और कार्यकर्ता नारे लगाते हुए पीछे पीछे साइकिल पर।
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