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लोकसभा उपचुनाव है कड़ी परीक्षा, दोनों पार्टियों के लिए रहेगी यह चुनौतियां

locationअलवरPublished: Jan 22, 2018 09:10:55 am

Submitted by:

Hiren Joshi

अलवर लोकसभा उपचुनाव दोनों पार्टियों के लिए बड़ी चुनौती है। भाजपा को अपनी सीट बचानी है, भी कांग्रेस को अधिक वोट से जीतना है।

loksabha election is challenge for both parties
अलवर. लोकसभा उपचुनाव में दोनों ही प्रमुख पार्टियों के लिए कड़ी चुनौती बनी हुई। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए सीट को बरकरार रखने की चुनौती है तो कांग्रेस के लिए वापसी की डगर भी उतनी ही कठिन है। कांग्रेस के प्रत्याशी करणसिंह यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं और एक बार संसद में भी अलवर का प्रतिनिधित्व किया है। जबकि जसवंत यादव तीसरी बार विधायक हैं। वे एक बार सांसद रह चुके हैं और किसी जमाने में कांग्रेस से ही जिला प्रमुख रह चुके हैं। दोनों की एक सामान्य चुनौती है कि जिले के यादव वोट बैंक में ज्यादा हिस्सा लेना है। जबकि दोनों को इसके लिए पूरा जोर लगाना पड़ रहा है।
कांग्रेस की उलझन

करणसिंह की कड़ी परीक्षा की बात करें तो जिले में यह कांग्रेस की सबसे बड़ी उलझन है। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को सीट से स्वाभाविक उम्मीदवार माना जा रहा था। जिले के राजनीतिक गलियारों में चर्चा आम थी की उपचुनाव में जितेंद्र सिंह प्रत्याशी होंगे। अंत में अप्रत्याशित रूप से करणसिंह को टिकट दे दिया गया। ऐसे में जिले के जमीनी कार्यकर्ताओं में शुरुआत में ढिलाई देखी गई। वे चुनाव क्यों नहीं लड़े इस पर बीजेपी ने तो सवाल उठाए ही, पार्टी में ही अंदरखाने निराशा जाहिर की गई। कुछ लोग यहां सूरजमुखी हैं और व्यक्ति विशेष को देखकर सक्रियता दिखा रहे हैं।
कांग्रेस की चुनौती यह भी है कि अगर इस चुनाव का परिणाम उनके आशानुकूल नहीं रहा तो अगले विधानसभा चुनावों से पहले यह सबसे बड़ी निराशा होगी। वहीं लोकसभा क्षेत्र में पार्टी का एक भी विधायक नहीं होने के कारण दमदार चेहरों की कमी है। इस चुनौती में भी पार्टी और प्रत्याशी के लिए एक सकारात्मक पक्ष यह है कि उनके पास जिले में खोने के लिए कुछ नहीं है। कार्यकर्ता इस पीड़ा को महसूस करते हुए अपने स्तर पर जुटे हुए हैं।
जसवंत की चुनौती

जसवंत यादव के लिए टिकट वितरण के समय से ही चुनौती थी। टिकट में दूसरे धड़े की मजबूत किलेबंदी के चलते देरी हुई। चूंकि सात विधायकों और जिले के एक प्रभावशाली नेता में से टिकट को लेकर दो धड़े थे। इस बीच यादव को टिकट मिला तो आशंका थी सबकी एकजुटता कैसे होगी? प्रदेश अध्यक्ष के प्रत्यक्ष दखल के बाद एक जाजम पर आ गए लेकिन खटास की चर्चा जनता कर रही है। पार्टी को यही डर है। जसवंत यादव को यादव वोट बैंक को संभालने की चुनौती है। अभी किशनगढ़ में विधायक का जबरदस्त विरोध भी हुआ था, पार्टी इसे लेकर भी गंभीर है। जिले में बड़ी संख्या में मेव मतदाता हैं। इन्हें पक्ष में लाना चुनौती होगी।
पार्टी और प्रत्याशी के लिए एक चिंता ये भी है कि अब तक जिला मुख्यालय पर चुनाव उनके पक्ष में उठ नहीं पाया है। क्योंकि मुख्यालय की हवा का असर सभी क्षेत्रों पर रहता है। उनके लिए राहत की बात यह है कि हर विधायक को स्पष्ट कर दिया गया है कि जितने वोट पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में आए थे उससे कम नहीं आने चाहिए। इसलिए सभी साख बचाने और विधानसभा चुनाव के टिकट के लिए जुटे हुए हैं।
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