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अलवर में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें ताक पर, कोई नहीं कर रहा पालना

locationअलवरPublished: Aug 29, 2018 01:15:58 pm

Submitted by:

Hiren Joshi

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Lyngdoh Committee guidelines not following in Alwar

अलवर में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें ताक पर, कोई नहीं कर रहा पालना

अलवर. छात्रसंघ चुनावों को जिस लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के आधार पर अनुमति मिली थी, उन्हीं सिफारिशों की चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी और उनके समर्थकों को इसकी परवाह ही नहीं है। अलवर जिले में सरकारी महाविद्यालयों में 31 अगस्त को होने वाले चुनाव में इन सिफारिशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। अलवर जिले के 14 राजकीय महाविद्यालयों और विश्वविद्यालय में 31 अगस्त को होने वाले छात्रसंघ चुनाव के लिए मतदान में घमासान मचा हुआ है। हालात यह हैं कि इन चुनावों को छात्रसंघ प्रत्याशियों से अधिक उनके परिजन इसे प्रतिष्ठा का सवाल मानकर चुनाव लड़ रहे हैं।
लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुसार कॉलेज परिसर से बाहर जाकर चुनाव प्रचार नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद कॉलेज के बाहर ही प्रत्याशियों का प्रचार तेजी से चल रहा है। इस चुनाव प्रचार में विद्यार्थियों ने कई चौपहियां गाडिय़ां लगा रखी है। कमेटी ने एक प्रत्याशी के चुनाव प्रचार पर अधिकतम 5 हजार रुपए की राशि निर्धारित की है लेकिन अध्यक्ष पद के लिए खड़े प्रत्याशी चुनाव प्रचार पर भारी भरकम रकम खर्च कर रहे हैं। छात्रसंघ अध्यक्ष अपने समर्थकों को भोजन खिला रहे हैं। इसके लिए कॉलेज से बाहर की इन्होंने अपना कार्यालय खोल रखा है। इन प्रत्याशियों के पोस्टर शहर में ही नहीं पूरे जिले में हर जगह दिखाई दे जाएंगे। कहने को महाविद्यालय को चुनाव प्रचार के लिए एक दीवार या जगह चयनित करनी चाहिए । इस नियम के बाद भी पोस्टर व बैनर जहां मर्जी हो लगाए जा रहे हैं। अलवर शहर के कई सार्वजनिक स्थलों पर लगे पोस्टर उस स्थान को बदरंग बना रहे हैं।
जाति के आधार पर कर रहे अपील

छात्रसंघ चुनाव में किसी सम्प्रदाय व जाति के लोग एक विशेष प्रत्याशी को वोट देने की अपील नहीं कर सकते हैं। इसके बावजूद सोशल मीडिया पर बहुत सी जातियों के नाम पर बने संगठनों के पदाधिकारी अपनी-अपनी जाति के प्रत्याशियों को जीताने की अपील कर रहे हैं।
संगठनों की विचारधार से जुड़े विद्यार्थी

इस वर्ष छात्रसंघ चुनावों में कई प्रत्याशी संगठनों की ओर से खड़े जाने पर चुनाव लड़ रहे हैं। इससे विद्यार्थियों के बीच खेमेबाजी और अधिक हो गई है। इस चुनाव के बाद विद्यार्थी एक जुट होने की बजाए अपने धड़ों में ही रहते हैं। छात्रसंघ चुनावों का मकसद एक अर्थ में लुप्त होता जा रहा है।

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